Atmadharma magazine - Ank 219
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष: १९ अंक: ३) तंत्री : जगजीवन बाउचंद दोशी (पोष : २४८८
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भगवान देखाय छे....
ने.....ज्ञाननयन खुली जाय छे.
सहज आनंद पाई रहो निजमें लौ लाई, दोरिदोरि ज्ञेयमें धुकाई कयों परतु है!
उपयोग चंचलके कीये ही अशुद्धता है, चंचलता मेटें चिदानंद उधरतु है.
अचल अखंड ज्योति भगवान दीसतु है, नैयकतें देखी ज्ञाननैन उधरतु हैं,
सिद्ध परमात्मा सों निजरूप आत्मा, आप अवलोकि दीप शुद्धता करतु है. (१९)
भावार्थ:–
अरे जीवो! सहज आनंद पामीने, निजस्वरूपमां ज लगनी लगाडीने
रहो. दोडादोडीमां बहार परज्ञेयोमां केम झुकी पडो छो? उपयोगनी चंचळता
करतां अशुद्धता थाय छे, अने ते चंचळता मटीने निजस्वरूपमां उपयोग ठरतां
चिदानंदनो उद्धार थाय छे.–सहज आनंद प्रगटे छे ते अंतर उपयोग वडे
अलख–अखंड ज्योतिस्वरूप भगवान देखाय छे, एने देखतां ज्ञाननयन
ऊघडी जाय छे अने ते ज्ञानचक्षु वडे सिद्धपरमात्मा जेवुं ज आ आत्मानुं
निजस्वरूप छे–एम अवलोकीने जीव पोतानी शुद्धता करे छे.
कवि दीपचंदजी शाह रचित ज्ञानदर्पण.
(२१९)