Atmadharma magazine - Ank 219
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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संत केरी शीतल आ छांयडी
केवुं मजानुं द्रश्य छे!! दीवाळीना दिवसोमां वृक्षनी
छायामां बेठा बेठा एकाग्र चित्ते गुरुदेव शास्त्रोनो
स्वाध्याय करी रह्या छे. गुरुदेवनी आसपास केवी
मजानी शांतिनी शीतल छाया छवाई गई छे!–ए
देखीने वृक्षो पण शरमाई जाय छे के अरे, अमारी
छाया भवतप्त प्राणीओने शांति नथी आपी शकती,
भवतप्त प्राणीओने तो आवा संतोनी शीतल छाया
ज शांति आपी शके छे. ग्रीष्म ऋतुना धोम तडकामां
तपायमान प्राणी जेम वृक्षनी शीतल छायानो आश्रय
ल्ये तेम संसारतापथी तप्त मुमुक्षुजीवो सत्पुरुषनी
शीतलछायानुं शरण ल्ये छे. हे गुरुदेव! अमे आपनां
बाळको, आपना मंगलचरणनी शीतलछायामां सदाय
केलि करता करता आनंदथी आत्महितने साधीए...ए
ज अभ्यर्थना.