Atmadharma magazine - Ank 219
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd. No. B 5669
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हि....त....शि....खा.....म....ण
* संतो कहे छे: हे भाई! पंचमकाळमां प्रतिकूळता तो होय, माटे तुं बहु
सावचेतीथी क्षमाभावने जाळवजे...ने आत्महित केम सधाय–ए एक ज लक्ष राखजे.
* कोईने पूर्वनां कांईक पुण्य होय ने जगतमां लाखो–करोडो माणसो पासेथी
मान–मोटाई मळे तेथी करीने कांई आत्मानी आराधनामां तेने ते मददरूप थाय एवुं
नथी.
* अने कोईने पूर्वनां पुण्य ओछां होय ने जगतमां अनेकविध प्रतिकूळताओ
होय तेथी करीने कांई आत्मानी आराधनामां तेने विघ्न थाय एम नथी. केम के–
* आत्मानी आराधना बहारना संयोगने आधीन नथी, आत्मानी आराधना
तो पोताना स्वभावने ज आधीन छे. ज्यां स्वभाव तरफ वळ्‌यो त्यां संयोग तो बहार
ज रही जाय छे.
* धर्मात्माने अंतरमां पोतानो आखो स्वभाव अनुकूळ छे, त्यां बहारनी कोई
प्रतिकूळता तेने नडी शकती नथी.
* अरे आ काळे आराधक जीवो थोडा ने ऊंधुंं पोषनारा घणा, तेमांथी
सत्यमार्ग शोधवो जगतने दुर्लभ थई पड्यो छे. वेदांतादि अन्य मतमां अध्यात्मना
शब्दो देखे त्यां जाणे के आमां पण कंईक छे!–अरे भाई, भगवान जिनेश्वरदेव सर्वज्ञ
परमात्मानो जैनमार्ग पामीने तुं बीजे क््यां अटक्यो? नियमसारमां तो कहे छे के हे
भगवान! तुं होतां हुं बीजाने केम नमुं? जे जीव, पारखुं थईने, पात्रतापूर्वक सत्
समजवा मांगे तेने आ काळे पण सत् अनुभवगम्य थई शके तेवुं छे. संतगुरुओना
प्रतापे आ काळे सत्य बहार आव्युं छे. अहो! संतोए मार्ग सुगम करी दीधो छे.
* आपणे माटे केटला महा भाग्यनी वात छे के, आवो हळहळतो पंचमकाळ
होवा छतां, जेमनी छायामां आत्महित साधी शकाय एवा साक्षात् संतोनो सुयोग
मळ्‌यो...तो हवे ए सुयोग केम सफळ थाय–ते माटे हे जीव! तुं दिनरात संभाळ कर
आवा महान सुयोगमां एक क्षण पण प्रमाद करवा जेवुं नथी.
* जेम कोई महान दरिद्रीने चिंतामणिनी प्राप्ति थाय छतां ते न अवलोके, तथा
जेम कोई कोढियाने अमृतपान कराववा छतां ते न करे, तेम संसारपीडित जीवने सुगम
मोक्षमार्गना उपदेशनुं निमित्त बने छतां ते अंगीकार न करे तो तेना अभाग्यनो
महिमा कोण करी शके?
–मुमुक्षु आत्मार्थीने तो एम थाय के अहा, अमने सद्गुरुगमे मोक्षमार्गनो
उपदेश मळ्‌यो. परम भाग्यथी आत्मकल्याणनो महान उपदेश मळ्‌यो चिंतामणि प्राप्त
थयो...अमृत मळ्‌युं.–आम समजी उत्साहपूर्वक ते पोताना हितोपदेशनुं श्रवण–मनन
करीने तेने अंगीकार करे छे.
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दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती मुद्रक प्रकाशक: हरिलाल देवचंद शेठ आनंद प्रिन्टींग प्रेस, भावनगर.