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केवो जाणे तो यथार्थ जाण्यो कहेवाय ते पण आमां बताव्युं. सर्व प्रकारे संपूर्ण एवो सर्वज्ञस्वभावी आत्मा
छे.–एवा आत्माने जाणे तो ज सम्यग्ज्ञान थयुं कहेवाय. आत्माने रागना कर्तृत्ववाळो के बंधनवाळो जाणे
तो तेमां वास्तविक आत्मानुं ज्ञान थतुं नथी. बीजी रीते कहीए तो आत्माने अबंधस्वभावी जाणे ने
बंधभावने भिन्न जाणे.–ए रीते जाणीने बंधथी जुदुं अबंधभावे ज्ञान परिणमे तो ज सम्यग्ज्ञान छे अने ते
सम्यग्ज्ञानना परिणमनमां सर्वे बंधभावोनो अभाव ज छे. जुओ, आ मोक्षमार्गमां गमन करतुं ज्ञान!
जेनाथी मोक्षमार्गमां गमन थाय–ते ज जीवने प्रयोजनरूप छे, ने तेनो ज जैनधर्ममां उपदेश छे. रागवडे कदी
मोक्षमार्गमां गमन थतुं नथी, राग तो मोक्षमार्गने रोकनार छे.
* जो सर्वज्ञस्वभाव बेठो तो रागनी रुचिने जरापण अवकाश रहेतो नथी; केमके सर्वज्ञस्वभावमां
छे.
* ज्यां द्रष्टि खुली के हुं कोण? हुं तो सर्वज्ञस्वभावी; मारा स्वभावमां रागना एक कणने पण
श्रद्धारूपे केवळज्ञान थयुं. अहा, ज्यां सम्यग्दर्शन थयुं त्यां पोताना आत्मानुं केवळज्ञान प्रतीतमां आवी गयुं.
तेनी रुचिनी दिशा रागथी पाछी फरीने केवळज्ञान तरफ वळी. ते कंकुवरणे पगले केवळज्ञान लेवा चाल्यो.
अने जे जीव चिदानंदस्वभावनो अनादर करीने रागनो आदर करे छे ते बंधपरिणामी जीव घोरदुःखमय
संसारमां रखडे छे. अरे, ज्ञाननो प्रेम छोडीने रागनो प्रेम कर्यो तेणे मोक्षनो मार्ग छोडीने संसारनो मार्ग
लीधो. आचार्यदेव कहे छे के हे भाई, जो तने मोक्षनो उत्साह होय, मोक्षने साधवानी लगनी होय तो समस्त
बंधभावोनी रुचि तुं छोड, ने ज्ञाननी रुचि कर; मोक्षना मार्गमां समस्त बंधभावोने निषेधवामां आव्या छे,
ने ज्ञानस्वभावनुं ज अवलंबन कराववामां आव्युं छे.