Atmadharma magazine - Ank 220
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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माह: २४८८ : २३ :
आत्मानो ज्ञानस्वभाव
(अनुसंधान पृष्ठ: १८ थी चालु)
आत्मा एटले ज्ञाननो पिंड. जेम साकर एटले गळपणनो पिंड, अफीण एटले कडवाशनो पिंड,
अग्नि एटले उष्णतानो पिंड, तेम आत्मा एटले ज्ञाननो पिंड; ज्ञान ते आत्मानो स्वभाव छे, अने ते
परिपूर्ण जाणवानी ताकातवाळो छे, केमके स्वभाव पोताथी अपूर्ण न होय आ रीते भगवान आत्मा
सर्वज्ञस्वभावी छे.–आवो होवा छतां अनादी काळथी आत्मा पोताने केम नथी जाणतो?–तो कहे छे के
अनादिकाळथी पोताना पुरुषार्थना अपराधथी ते कर्ममळवडे लेपायेलो छे तेथी ते पोताना सर्वज्ञ स्वभावने,
जाणतो नथी. सर्वज्ञ स्वभावनो आश्रय न करतां, पुरुषार्थना अपराधने लीधे बंधभावनो आश्रय करे छे
तेथी पोताना अबंधस्वभावने (सर्वज्ञस्वभावने, मुक्तस्वभावने) ते जाणतो नथी. निगोदमां पण पोताना
प्रचूर भावकलंकने लीधे ज जीव रखडयो छे. निगोदथी मांडीने नवमी ग्रैवेयक सुधी अज्ञानभावे ज्यां ज्यां
रखडयो ते पोताना पुरुषार्थना अपराधथी ज जीव रखडयो छे. जेनाथी रखडवानुं थाय ते भाव आदरणीय
केम होय? माटे शुभ के अशुभ कोई कर्म आदरणीय नथी; अहो, आत्मानो सर्वज्ञस्वभाव तो मुक्तस्वरूप
छे, ने पुण्य–पापना भावो तो बंधस्वरूप छे, माटे ज्ञानस्वभावनो आश्रय करीने ते बंधस्वरूपभावो
निषेधवा योग्य ज छे.
चैतन्यस्वभावी आत्मा तो अबंधस्वरूप छे, ते पोते कर्मबंधनुं कारण नथी; ते पोते तो ज्ञ–स्वभावी
छे, सर्वने जाणे एवो तेनो स्वभाव छे. पण बंधभावोमां अटकवाने लीधे ते सर्वज्ञस्वभावने जाणतो नथी ने
संसारमां रखडे छे; ते तेनो पोतानो ज अपराध छे. रागादि भावोमां हित मानीने जे अटक्यो ते बंधनमां
ज अटक्यो छे, ते मोक्षना मार्गे आव्यो नथी.
आत्मा सर्वज्ञस्वभावी होवा छतां संसारमां केम रखडे छे? के बंधभावमां अटक्यो छे माटे;
शुभरागमां अटक्यो ते पण बंधभावमां ज अटक्यो छे. शुभभाव वडे अबंधपणुं जरापण प्रगटे एम बनतुं
नथी; शुभभाव पोते बंधस्वरूप ज छे, जे पोते बंधस्वरूप होय ते मोक्षनुं साधन केम थाय?
जाणवुं–ए ज जेनुं स्वरूप छे तेमां वच्चे राग क््यांथी आव्यो? रागथी–शुभरागथी किंचित लाभ थाय
एम माननारो खरेखर पोताना आत्माने रागस्वरूप ज माने छे पण ज्ञानस्वरूप निजात्माने ते जाणतो
नथी. अहो, ज्ञानने अने रागने अत्यंत भिन्नता छे, थांभलाने जाणनारुं ज्ञान जेम थांभलाथी जुदुं छे,
आवा भिन्न ज्ञानस्वभावने भेदज्ञान वडे अज्ञानी जीव जाणतो नथी.
एक तरफ आखोय सर्वज्ञस्वभाव;
एक तरफ अशुभ ने शुभ बंधभावो;
–आम बे पडखां छे. तेमांथी सर्वज्ञस्वभावनी सन्मुख थईने तेनी रुचि–प्रतीति करनार सम्यग्द्रष्टि
जीव बंधभावोनी रुचिमां रोकातो नथी; अने जे मिथ्याद्रष्टि जीव बंधभावोनी रुचिमां रोकाय छे ते जीव
सर्वज्ञस्वभावनी रुचि–प्रतीति करी शकतो नथी. सर्वज्ञस्वभावनो अनादर करीने बंधनो आदर कर्यो तेनुं फळ
संसार छे. अने रागनो निषेध करीने सर्वज्ञस्वभावनो आदर ते मोक्षनुं कारण छे. सर्वज्ञस्वभावना
अवलंबन वडे बंधन तूटी जाय छे.
कर्मना उदयने लीधे जीव बंधाय छे?–तो कहे के ना; पोताना सर्वज्ञस्वभावने नहि जाणनारो जीव
पोताना पुरुषार्थना अपराधथी ज बंधाय छे. अज्ञानी
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(आत्मधर्म अंक २१९ चोथा पाने, छेल्ला पारीग्राफनी छठ्ठी लाईनमां “एकान्त शासनने मुकीने”
एम छपायेल छे तेने बदले “अनेकान्त शासनने मुकीने” एम सुधारीने वांचवुं.)