Atmadharma magazine - Ank 222
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : २२२:
ऐरावत हाथी लईने ईन्द्र आवी पहोंचे छे ने सीमंधरनगरने त्रण प्रदक्षिणा करे छे....ईन्द्राणी नेमकुंवरने
देखीने परम हर्षित थाय छे ने भगवानने गोदीमां तेडीने सौधर्मेन्द्रने आपे छे...ए बधा द्रश्यो केवा मधुर
हता!! अने पछी गामना एक छेडाथी बीजा छेडा सुधी फेलायेल जन्माभिषेकनी गजयात्रा केवी अद्भुत
हती! गाम नानुं ने रथयात्रा मोटी–एवुं ए द्रश्य हतुं. हाथी पण आनंदथी सुंढमां चमर लेतो हतो.
* * नदी किनारे मेरुनी रचना....त्रण प्रदक्षिणा....ईन्द्रो द्वारा महान अभिषेक.....अहा....केवो ए
पावन प्रसंग, केवी ए वखतनी भक्ति! केवा ए भजन ने केवा ए नृत्य! ए वखते आकाशनुं कुदरती द्रश्य
पण आश्चर्यकारी हतुं. ईन्द्रोए तान्डव नृत्य सहित आनंद मनाव्यो.
* * बपोर थयुं पा....र....णा....झू....ल....न. हैयानां हेतथी भक्तोए भगवानने झूलाव्या! धन्य ए
मातृ वात्सल्यता! धन्य ए जिननाथने झूलावनारा पावन हाथ! “गोदी लेले”......नुं द्रश्य पण आनंदकारी
हतुं.
* * रात्रे राजसभा.....हरिवंश महिमा.....वसंतऋतु.....श्रीकृष्णनी राणीद्वारा नेमकुमारनुं वस्त्र
धोवानी ना, नेमकुमारनुं अचिंत्य बळ, श्रीकृष्णनी चिंता अने नेमकुमारना लग्ननी तैयारी....मोटा मोटा
राजा–महाराजाओ साथे नेमकुमारनी जाननुं भव्य द्रश्य. जानमां नेमकुमारना रथनी शोभा! जुनागढ आव्युं
नजीक.
* * जुनागढ....एक बाजु नेमकुमारना रथनो दिव्य देदार....ने बीजी बाजु पांजरे पुरायेला
पशुओना करुणक्रंदननो चितार! ध्रूजता पशुओनो पोकार सांभळीने नेमकुमार रथ ऊभो राखे छे.....
लग्नप्रसंग निमित्ते जीवहिंसानी वात सांभळीने वैराग्य पामे छे–रथ पाछो वाळे छे....
“अरे सारथि! रथने पाछो वाळ....पाछो वाळ! हुं हवे दीक्षा लईश.”
सारथी आंसुभिनी आंखे विनवे छे....प्रभो! दीक्षा न ल्यो....एकवार घेर पाछा पधारो....आपना
विना शिवादेवी माता पूछशे के मारा नेमकुमार क््यां?–तो माताने हुं शो जवाब आपीश!! ‘नेमकुमार
दीक्षित थई गया’ एम हुं कहीश तो ते सांभळतां शिवादेवी माता मूर्छा खाईने जमीन पर गीर पडशे” .....
एम कहेतां कहेतां सारथी पोते पण मूर्छित थईने भगवानना चरणमां ढळी पडे छे......अहा, ए वखतनुं
करुण वैराग्यद्रश्य हजारो सभाजनोना हैयाने हचमचावी देतुं हतुं.....छतां नेमकुमार तो पोताना
वैराग्यभावनामां अचल ज हता....
अहा, केवा हता ए अद्भुत द्रश्यो!!
केवा हता ए वैराग्यना प्रसंगो!!
केवा हता ए पशुपोकारना करुण द्रश्यो!!
केवो हतो ए भगवानना वैराग्यनो देदार!!
* * आ तरफ राजमहेलमांथी राजीमती भगवानना रथनी शोभा नीहाळी रही हती–ने अचानक
रथ पाछो फरतो देखीने, तथा भगवानना वैराग्यना समाचार सांभळीने पोते पण वैराग्य भावना भावे छे
– ए द्रश्यो संवाद अने काव्य द्वारा पडदा पाछळथी रजु करवामां आव्या हता....ए प्रसंगे गवायेलुं वैराग्य
झरतुं काव्य सांभळीने गुरुदेव सहित हजारो श्रोताजनो वैराग्यथी गद्गद थई गया हता–
ओ....सांवरिया नेमिनाथ! शाने गया गीरनार....
ओ....तीनभुवनके नाथ! शाने गया गीरनार....
यह आभूषण मेरे अंग पर...अब सोहे ना लगार....
प्रभु गया गीरनार.....
छोडुं शणगार बनुं अर्जिका, रहुं चरण संत छांय....
प्रभु गया गीरनार.....