Atmadharma magazine - Ank 222
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : २४८८ : ११ :
(पूरा गायन माटे जुओ, “मानस्तंभ महोत्सव अंक” )
* * पछी तो लौकान्तिकदेवोए आवीने स्तुतिपूर्वक भगवानना वैराग्यनी अनुमोदना करी. ईन्द्रो
अने देवो दीक्षाकल्याणक ऊजववा पालखी लईने आव्या....भगवान सहस्राम्रवनमां पधार्या....अहा,
सोनगढनुं आम्रवन भगवानना दीक्षा प्रसंगथी पावन थयुं....भगवाननो केशलोच, ध्यान....
मनःपर्ययज्ञान....अने ए दीक्षावनमां गुरुदेवनुं वैराग्यभर्युं प्रवचन! मुनिभक्ति! क्षीरसमुद्रमां केशक्षेपन.
भगवानना वैराग्यना ए द्रश्यो अद्भुत हता.
* * बपोरे तथा रात्रे मुनिभक्ति; तथा अजमेर भजन–मंडळी द्वारा नेमकुमार अने सारथी वच्चेनो
संवाद; तथा राजुल अने तेना पिताजी वच्चेनो संवाद. बंने संवाद वैराग्यप्रेरक हता.
* * चैत्र सुद ९ : अहा, नेमनाथ मुनिराजना प्रथम आहारदान प्रसंगनी शी वात! मुनिराज
नेमप्रभु आहार माटे नगरीमां पधार्या....हैयाना उमळकाथी ने शुद्धभावथी पू. चंपाबेन–शांताबेने
भक्तिपूर्वक प्रभुने पडगाहन कर्युं.....प्रदक्षिणा करी....पूजा करी.....नवधा भक्तिपूर्वक नेममुनिराजने
प्रथम आहारदान कर्युं.–ए महा आनंदकारी प्रसंगना सुस्मरणो अत्यारे पण हृदयमां आनंद उपजावे
छे. ए प्रसंगे जयजयनाद थया.....रत्नवृष्टि थई. ए धन्यप्रसंगनी वात नीकळतां ज बंने बहेनो
अत्यंत प्रमोद अने उल्लासथी गदगद थईने कहे छे के अहो, अमारी घणा वखतनी भावना हती ते
पूरी थई....भगवानने आहारदान देती वखते तो जाणे साक्षात् तीर्थंकर भगवान ज आंगणे
पधार्या होय–एम थतुं हतुं, ने सहेजे सहेजे अंतरना भावो उल्लसी जता हता....अहो,
रत्नत्रयधारक साक्षात् मोक्षमार्ग अमारे आंगणे आव्यो.....अमारा आंगणे तीर्थंकरना पगला
थया.....मुनिराजना पवित्र चरणथी अमारुं आगणुं पावन थयुं. भगवानने आहार देवाथी
अमारा हाथ पावन थया....अमारुं जीवन कृतार्थ थयुं...जीवनमां विरल ज आवे एवो ए धन्य
प्रसंग हतो.”
* * हजारो भक्तो ए द्रश्य नीहाळीने भक्तिथी अनुमोदना करीने महापुण्योपार्जन करी रह्या हता.
* * आहारविधि प्रसंगे पू. बेनश्रीबेनना घरमां पधारीने प्रभुजीए घरने पावन कर्युं. गुरुदेव पण
प्रभुजीनी पासे बेठा हता; प्रभुचरणनुं गंधोदक शिरे चडाव्युं हतुं. आहारदान पछीनी असाधारण भक्तिना
स्मरणो आजेय कानमां गुंजारव पेदा करे छे.
* * बपोरे हर्षभर्या वातावरण वच्चे गुरुदेवनो पवित्र हस्ते ३२ जिनबिंबो उपर अंकन्यासविधान
थयुं....सुवर्णशलाका वडे घणा भावथी गुरुदेवे अंकन्यास कर्युं.
* * पछी भगवान नेमनाथने केवळज्ञान थयुं....समवसरणनी सुंदर रचना थई....दिव्यध्वनि
तरीकेनुं प्रवचन थयुं....समवसरणने प्रदक्षिणापूर्वक भक्ति थई....रात्रे वज्रबाहु वैराग्यनो संवाद थयो.
* * धर्मवृद्धिना आ महोत्सवमां दसमनी तिथि वृद्धिगत हती. अंकूरा पण खूब ज वृद्धिगत थईने
खील्या हता.
* * पहेली दसमनी सवारमां नेमिनाथप्रभुना निर्वाण–कल्याणकमां गीरनारनुं द्रश्य तथा
धर्मशाळा, कुवो वगेरेनां द्रश्यो आनंदकारी हता....भक्तोने गीरनार उपर जवानुं मन थई जतुं हतुं.....
* * आजे भावनगर नरेश कृष्णकुमारसिंहजी तथा वल्लभीपुर नरेश गंभीरसिंहजी महोत्सव जोवा
आव्या हता, ने प्रसन्न थया हता.