Atmadharma magazine - Ank 222
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : २२२
अहिंसक वीरता
(ब्र. हरिलाल जैन)
वीरप्रभुनी वीरता अलौकिक हती.....अहिंसक होवा छतां तेमां एवुं वीरत्व
हतुं के जे एक योगीना जीवनमां होय. मोटा मोटा सम्राटोनुं मस्तक पण ए
वीरत्वनी पासे झूकी पडतुं. जेनी पासे मोटा मोटा योद्धाओ पण हारी जाय–एवा
अंतरंग शत्रुओने जीतवा माटेनी अहिंसक वीरतानी आ वात छे.
आत्मसाधना करतां करतां योगीनुं बळ ज्यारे वृद्धिना शिखरे पहोंचे छे
त्यारे तेनी शांति सुमेरु जेवी निश्चल थई जाय छे; पछी जगतनी मोटामां मोटी
बाधा पण शांतिने विघ्न करवा समर्थ नथी. शरीरनी तेने उपेक्षा छे,–हवे तो शांति
ज तेनुं शरीर छे, निर्विकल्पता तेनी संपत्ति छे, वीतरागता–निरपेक्षता–मध्यस्थता
तेनुं कुटुंब छे. चोर–डाकु के विदेशी राजा कोई तेनी शांतिने के संपत्तिने लूंटवा समर्थ
नथी. कोई मनुष्यकृत, देवकृत के प्रकृतिकृत मोटामां मोटो उपसर्ग पण तेनी शांतिने
भेदवा असमर्थ छे. ते अहिंसक वीरने कोई विद्वेषी प्रत्ये नथी द्वेष, नथी घृणा, नथी
क्रोध, के नथी तेनो सामनो करवानी भावना. ते योगीने माटे तो ते करुणापात्र छे.
आत्मशांतिने बाधा पहोंचाडनार तो अंतरना संस्कार छे, तेने तो ते वीरे
काबुमां लई लीधा छे.....पदे पदे सावधान रहीने ते मोक्षपंथे चाली रह्यो छे. कदाचित्
राग–द्वेषना संस्कार जरापण जागे तो ते वखते बार वैराग्य भावनाओ लईने
सर्वशक्तिथी तेनी उपर तूटी पडे छे, ने शांतिमां विघ्न करनारा ते संस्कारोने
जडमूळथी नष्ट करी नाखे छे. ते बधुं सहन करी शके छे पण शांतिमां विघ्न आववा
देतो नथी.....आत्मानी मधुर शांतिनो विरह कोईपण भोगे ते सहन करी शकतो नथी.
–आथी ते वीरनुं वीरत्व, तेनुं पराक्रम ते कामक्रोधना संस्कारो उपर चाले छे
के जे संस्कारोने आधीन आखुं जगत पड्युं छे. आत्मज्ञवीर सिवाय संसारमां एवो
कयो योद्धो छे के जे कामक्रोधने जीती शक््यो होय? पोताने महाबळवान अने वीर
योद्धो माननार पण कोईनो जराक कडवो शब्द काने पडतां ज अंदर ऊठता क्रोधने शुं
दबावी शके छे?–के कोई सुंदर स्त्रीद्वारा फेंकायेला एक तीखा कटाक्ष बाणने शुं ते
सहन करी शके छे?–नहीं; तरत ज ते विह्वळ थई जाय छे.....क्रोधने आधीन ते
पोतानी जातने भूली जाय छे, अने कामने आधीन थईने ते तडके तडफडती
माछलीनी माफक तरफडवा लागे छे. बस, पत्तो लागी गयो के ते केवडो वीर छे!–
केवडो मोटो योद्धो छे!! तेनुं सर्व पराक्रम, तेनी सर्व वीरता,–जेनुं तेने घमंड हतुं ते
कामक्रोधना संस्कार पासे हवामां ऊडी जशे....ने ते संस्कारो तेनी ठेकडी करशे के वाह,
तारी बहादुरी! जोई तारी वीरता!! तारी वीरता!!–जा, बंगडी पहेरीने बेसी जा
घरमां! आ तो तारा उपर तद्रन नजीवुं आक्रमण हतुं–एटलामां ज रोई पड्यो!
पुरुषार्थहीन! क््यां गई