Atmadharma magazine - Ank 223
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : वैशाख : २४८८
शुद्धनयनो विषय
एकरूप शुद्धात्मा छे.
तेने कोई पण विकल्पनी
अपेक्षा नथी
(राजकोटमां श्री समयसार गाथा १२.
कळश ७, उपर पू. गुरुदेवनुं प्रवचन)
(ता. १प–२–६१ बुधवार)
* * * * * *
शुद्धनयना बळ वडे आत्मज्योति प्रगट थाय छे, बीजाथी नहि–एम कळश द्वारा
कहे छे:–
अतः शुद्धनयायत्तं प्रत्यग्ज्योतिश्चकास्ति तत्।
नवतत्त्वग
तत्त्वेपि यदेकत्वं न मुंचति।। ७।।
१. शुद्धनय–स्वसन्मुख एकाग्रद्रष्टिने आधीन जे भिन्न आत्मज्योति छे ते
प्रगट थाय छे ते आत्मज्योति नवतत्त्वना अनेक विकल्परूपे थवा छतां पोताना
एकपणाने छोडती नथी.
शुद्धनयनो विषय भगवान आत्मा पूर्ण शुद्ध छे. तेने आधीन आत्मज्योति छे,
शुभ रागरूप व्यवहारना विकल्प ऊठे तेने आधीन आत्मज्योति नथी. व्यवहारनयना
विषयमां नवतत्त्व होवा छतां निश्चये चैतन्यज्योति पोताना एकपणाने छोडती नथी.
विकल्प (राग) पर्यायमां होय ए राग होवा छतां राग अने गुणभेदथी भिन्न एकलो
ज्ञायकभाव शुद्ध छे. तेम अंतर्मुख थतां अनुभवी शकाय छे.
२. एकला नवतत्त्वना भेदने अनुभवे, एना जाणपणामां ज रोकाय ते
मिथ्यात्वनो अनुभव छे. व्यवहारना अवलंबन वडे आत्मतत्त्वनी प्राप्ति कदी पण
थती नथी. बाह्य अहिंसा, सेवा अने शुभरागनी रुचिवाळने आ वात कठण पडे तेम
छे, पण वस्तु स्वरूपनी यथार्थ समजण वगर कदी पण संसार परिभ्रमण टळतुं नथी.