: ३६ : वैशाख : २४८८
जाय तो खबर पडे के ते आवुं तत्त्व छे.
“क््यारे थईशुं बाह्यान्तर निर्ग्रंथ जो...” एमां यथार्थ निर्ग्रंथपणानी–
वीतरागी मोक्षमार्गमां आरूढ थवानी भावना श्रीमद् राजचंद्रजी भावे छे.
बाह्यमां वस्त्रनो ताणो नहि, अंदरमां मिथ्यात्व रागादि दोष नहि.
मिथ्यात्वनी गांठ तो तेमणे प्रथम तोडी हती अने विशेष वीतरागी
चारित्रदशानी भावना गृहस्थदशामां तेओ करे छे.
२०. राग–ईच्छा कथन अने ईन्द्रियोना व्यापारथी पार शुद्धचैतन्य
वस्तु छे. छालां काचली अने रातड रहित सफेद कोपराना गोळानी पेठे आत्मा
अंदर देह, कर्म अने राग विनानो सहजस्वाभाविक ज्ञानानंदमय अनादि
अनंत छे, ते कोईथी करायेलो नथी; कोई पुण्यनी के शुभरागनी क्रिया
करवाथी ते प्राप्त थाय एवो नथी. क्षयोपशमभावरूप अपूर्ण उघाड जेटलो ते
नथी, क्षायिक भाव छे, ते पण आत्मानुं त्रिकाळी स्वरूप नथी. आत्मा तो
अनादि अनंत परम पारिणामिक ज्ञायक भाव स्वरूप छे. जेना आधारे
सम्यग्दर्शनरूप धर्मनी शरूआत थई, पूर्ण शुद्धतारूप क्षायिकभाव प्रगटे ते
ध्रुवरूप कारणस्वभावने परमभाव अथवा शुद्धभाव कहेवामां आवे छे.
२१. गज मोटो के डुंगर? मोटा–मोटा पर्वतोनां माप खूटे पण
मापनार गज न खूटे अनंता पर्वतोने मापे पण ते तो एवोने एवो रहे छे.
जेम गजमां माप करवानी जे ताकात छे तेने हद नथी तेम आत्माना सर्वज्ञ
स्वभावमां जाणवानी बेहद ताकात छे. त्रणकाळ त्रणलोकने एकसाथे–एक
समयमां समस्त प्रकारे जाणे. एक लोक छे पण कदाच अनंतगुणा लोक होय
तो पण तेने जाणे. अहो! आवा आत्मानां गाणां प्रेमथी अज्ञानीए कदी
सांभळ्यां पण नथी.
२२. माता छोकराने डाह्यो–डाह्यो कहीने ऊंघाडवा माटे गाणां गाय छे.
सर्वज्ञ धर्मपिता अज्ञानमोहमय भावनिंद्रामांथी जीवोने जगाडवा माटे गाणां
गाय छे. तेओ कहे छे के तुं अनादि–अनंत, देहथी जुदो अने
परमज्ञानस्वभावी, परमपारिणामिक तत्त्व छो; तारामां एकलुं डहापण–ज्ञान
भर्युं छे एमां नजर कर. अज्ञान दशामां पण अंदर बेहद निर्मळतारूप
डहापण अव्यक्तपणे भरेल छे, परंतु अज्ञानीने तीव्र मोहवशे ज्ञानविकासनी
शक्ति घटी गई होय छे. परंतु ज्ञानीनी द्रष्टि अनादि–अनंत
कारणपरमात्मारूप शक्ति–परमभाव निधान छे तेना उपर जाय छे.
२३. आ कारणपरमात्मा ते खरेखर त्रिकाळी आत्मा छे, अति आसन्न
भव्य जीवोने आ निज परमात्मतत्त्व सिवाय बीजुं कांई उपादेय नथी. अमर
थवाना रस्तानी आ वात छे. अंदर ध्रुवकारणपरमात्मद्रव्य नित्य एकरूप छे,
तेनी श्रद्धा तेनुं लक्ष अने तेमां एकाग्रता करी तेमांथी आनंद लेवानी आ रीत
छे.
परमपावन दिव्यताना दिव्यसंदेशा आपी परमात्माना विरह
भूलावनार सद्गुरुदेवनो जय हो...जय हो!