जेठ : २४८८ : १७ :
उत्तम निषेध पर्वत परनां मध्यमां आश्रय पामेलो सूर्य शोभायमान होय छे. ते अहमिन्द्र पोताना
पुण्यरूपी जळद्वारा सिंचायेला ज न हतां परंतु शारीरिक गुणोनी माफक अनेक शोभाओ द्वारा शोभित
पण थयां हतां ××× अणिमा, महिमा आदि गुणोथी प्रशंसनीय वैक्रियिक शरीरने धारण करवावाळा
ते अहमिन्द्र जिनेन्द्रदेवनी अकृत्रिम प्रतिमाओनी पूजा करता थकां पोताना क्षेत्रमां विहार करतां हतां.
तेमज ईच्छा मात्रथी मळेलां मनोहर गंध, अक्षत वगेरे द्वारा पुण्यनो बंध करवावाळी श्री
जिनेन्द्रदेवनी पूजा विधिपूर्वक करतां हतां. ते अहमिन्द्र पुण्यात्मा जीवोमां बधाथी श्रेष्ठ हतां एथी ए
सर्वार्थसिद्धि विमानमां रहीने समस्त लोकमां वर्तती जिनप्रतिमाओनी पूजा करता हतां. ए पुण्यात्मा
अहमिन्द्रे पोताना वचनोनी प्रवृत्ति जिनप्रतिमाओनुं स्तवन करवामां लगावी हती. पोतानुं मन
एनां गुणनुं चिंतवन करवामां परोव्युं हतुं, अने पोतानुं शरीर एमने नमस्कार करवामां लगाडयुं
हतुं. धर्मचर्चामां वगर बोलावे आववावाळां पोताना समान ऋद्धिओने धारण करवावाळा अने शुभ
भावनाओथी युक्त बीजां अहमिन्द्रो साथे वार्तालाप करवामां एमने घणो प्रेम हतो. अतिशय
शोभाना धारक ते अहमिन्द्र क््यारेक तो पोताना मंदहास्यना किरणरूपी जळना पूरथी दिशारूपी
दिवालोने धोता थकां अहमिन्द्रोनी साथे तत्त्वचर्चा करता हता.
वळी अहमिन्द्रो परक्षेत्रमां विहार करता नथी कारण के शुक्ललेश्याना प्रभावथी पोताना
भोगोद्वारा संतोषने प्राप्त थवांवाळा अहमिन्द्रोने पोताना निरूपद्रव सुखमय स्थानमां जे उत्तम प्रेम
होय छे ते एमने बीजे कांई प्राप्त थतो नथी.
हुं ज ईन्द्र छुं, मारा सिवाय बीजो कोई ईन्द्रो नथी. आथी ते उत्तमदेव अहमिन्द्र नामथी प्रसिद्धि
पामे छे. ३३, सागरनी आयुवाळा, एक हाथ ऊंचा अने हंस समान श्वेत शरीरने धारण करवावाळा
अहमिन्द्र ६३ हजार वर्ष वीती गया पछी मानसिक दिव्य आहार ग्रहण करता थकां धीरज धारण करता
हतां. अत्यार सुधी जेटलुं वर्णन कर्युं छे. तेनाथी पण अधिक सुंदर अने अतिशय चमकवाळुं एमनुं
शरीर एवुं शोभायमान हतुं के मानो एक जग्याए एकठो करेलो सौंदर्यनो सार ज होय.
वज्रनाभिना विजय, वैजजयन्त, अपराजित, बाहु, सुबाहु, पीठ अने महापीठ नामना आठे
भाई तथा विशाळ बुद्धिधारक धनदेव ए नवे जीव पण पोताना पुण्यना प्रभावथी ए ज
सर्वार्थसिद्धिमां वज्रनाभि समान अहमिन्द्र थया.
आ प्रकारे ए सर्वार्थसिद्धिमां ते अहमिन्द्र मोक्ष समान सुखनो अनुभव करता थकां प्रवीचार
विना (मैथुन विना) लांबा समय सुधी सुखी रहेता हता. ए अहमिन्द्रोने शुभकर्मना उदयथी जे
सुखाभासरूप निर्बांध सुख प्राप्त थाय छे ते प्रवीचार सहित सुखथी अनंत गणुं होय छे.
जो के संसारमां मोहीजन स्त्री समागमथी ज जीवोने सुखनी प्राप्ति माने छे. त्यारे ए
अहमिन्द्रोने स्त्री समागम न होवाथी सुख केवी रीते थई शके? जो कोई आ प्रमाणे प्रश्न करे तो तेनुं
समाधान आ प्रमाणे करवामां आवे छे के आ संसारमां जिनेन्द्रदेवे आकुलतारहित परिणमने ज सुख
कह्युं छे. एटला माटे ते सुख ए सरागी जीवोने केवी रीते थाय के जेना चित्त अनेक प्रकारनी
आकुळताओथी व्याकुल थई रह्या छे.