वज्रनाभिमुनिए उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप त्याग, आकिंचन्य अने ब्रह्मचर्य
ए दश धर्म धारण कर्या हतां.
अनित्य छे. तथा मृत्यु, घडपण अने जन्मनो भय उत्पन्न थतां मनुष्योने जरापण शरण नथी द्रव्य, क्षेत्र,
काळ, भव अने भावरूप विचित्र परिवर्तनोने कारणे आ संसार अत्यंत दुःखरूप छे. ज्ञानदर्शन स्वरूपी
आत्मा सदा एकलो रहे छे. शरीर, धन, भाई अने स्त्री वगेरेथी आ आत्मा सदा जुदो रहे छे. आ
शरीरना नव द्वारोथी सदा मळ झर्या करे छे. तेथी आ (शरीर) अपवित्र छे. आ जीवने पुण्य–पापरूपी
कर्मोनो आस्रव थया करे छे. आत्म परिणामोनी शुद्धि अनुसार गुप्ति, समिति आदि कारणोथी ए कर्मोनो
संवर थाय छे. सम्यक् तपथी निर्जरा थाय छे.
धर्मथी ज जीवोनुं कल्याण थई शके छे. आ प्रकारे तत्त्वोनुं चिंतवन करता थकां तेओए बार भावनाओ
भावी. ए समये शुभ भावोने धारण करवावाळां ते मुनिराज लेश्याओनी अत्यंत विशुद्धिने धारण करी
रह्यां हतां.
छे. बधाथी श्रेष्ठ छे, अने बधाथी उत्कृष्ट छे. आनी लंबाई, पहोळाई (४प लाख योजन छे) जंबुद्वीप
बराबर छे. आ स्वर्गना तेसठ पटलोना अंतमां ते चुडामणि समान स्थित छे. आ विमानमां उत्पन्न
थवावाळां जीवोना बधां मनोरथ अनायास ज सिद्ध थई जाय छे एथी ते स्वार्थसिद्धि ए सार्थंक नामने
धारण करे छे. आ विमान घणुं ज ऊंचु छे. तथा फरकती धजाओथी शोभायमान छे, तेथी एवुं मालूम पडे
छे के जाणे सुख देवानी ईच्छाथी मुनिओने बोलावी रह्युं होय. जेना पर अनेक फूलो पथरायेलां एवी
त्यांनी नीलमणिथी बनेली भूमिने देखीने देवलोकोने ताराओथी व्याप्त आकाशनुं स्मरण थई आवे छे.
देवोना प्रतिबिंबने धारण करवावाळी त्यांनी रत्नमय दीवालो एवी मालूम पडे छे के जाणे कोई नवा
स्वर्गनी सुष्टि ज करवा ईच्छती होय. त्यां रत्नोनां किरणोए अंधकारने दूर करी दीधो छे. ते बराबर ज
छे, खरेखर निर्मळ पदार्थ मिलन पदार्थनी साथे संगति करतो नथी. आ प्रकारे अकृत्रिम अने श्रेष्ट
रचनाओथी शोभायमान रहेतां ए विमानमां उपपाद शय्या पर ते देव क्षणभरमां पूर्ण शरीरने प्राप्त
थई गयो. दोष, धातु अने मळना स्पर्शथी रहित, सुंदर लक्षणोथी युक्त तथा पूर्ण यौवन अवस्थाने प्राप्त
थतुं एमनुं शरीर क्षण भरमां प्रगट थई गयुं हतुं. जेनी शोभा कदी करमाती नथी, जे स्वभावथी ज
सुंदर छे अने जे आंखोने आनंद आपवावाळुं छे एवुं एमनुं शरीर एवुं सुशोभित हतुं के जाणे
अमृतवडे बनाव्युं होय. आ संसारमां जे सारां, सुगंधित अने चिकणा परमाणुं हता, पुण्योदयने कारणे
ए परमाणुओथी एमना शरीरनी रचना थई हती. पर्याप्ति पूर्ण थया पछी उपपाद शप्या पर पोताना
शरीरनी कांतीरूपी चांदनीथी घेराएला ते अहमिन्द्र एवा सुशोभित हता के जाणे गंगानदीनी रेतीना
टेकरा पर एकलो बेठेलो जुवान हंस शोभायमान होय छे. उत्पन्न थयां पछी ते अहमिन्द्र पासेना
सिंहासन पर बिराज्या हता. ए समये तेओ एवा शोभायमान थतां हता के जेम अति