Atmadharma magazine - Ank 224
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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जुन १९६२ : अंक: ८) तंत्री : जगजीवन बाउचंद दोशी (जेठ : २४८८
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सर्व द्रव्यमां उत्तम
जो के आ चिद्रुप–ज्ञानघन आत्मा ज्ञेय (ज्ञाननो
विषय) अने द्रश्य (दर्शननो विषय) छे, छतां ते
स्वभावथी ज पदार्थोने जाणनार–देखनार छे. परंतु अन्य
कोई पदार्थ एवो नथी के जे ज्ञेय अने द्रश्य होवा छतां पण
ज्ञाता द्रष्टा पण होय. एटला माटे आ चिद्रुप समस्त
द्रव्योमां उत्तम छे.
वस्तुना स्तवन
अनादिनिधून (अनादिअनंत) वस्तु न्यारी न्यारी
पोतपोतानी मर्यादापूर्वक परिणमे छे. कोई कोईने आधीन
नथी तेम कोई पदार्थ कोईनो परिणमाव्यो परिणमतो नथी.
राग अने परनी अपेक्षा विनानो हुं तो ज्ञानस्वरूप छुं
एवो द्रढ निश्चय करी, ज्ञातापणानुं चिन्तन करवुं
वस्तुस्तवन छे.
(२२४)