: ४ : आत्मधर्म : २२४
रा ष्ट्री य शा ळा मां
पूज्य गुरुदेवनुं
प्रवचन
(राजकोटमां पू. गुरुदेव “अंध महिला विकासगृह” नुं अवलोकन करवा
पधार्या, त्यारे श्री नारणदास गांधी तथा श्री पुरशोत्तमदास गांधीनी
भावनानुसार आ प्रवचन कर्युं हतुं.)
ता. १७–२–१९६१
१. आ देहमां रहेलो आत्मा देहथी भिन्न अविनाशी वस्तु छे–तेमां पूर्वभवोनां संस्कार होय छे. आ
भव पहेलां आ जीव क्यां हतो तेनुं भान थई शके छे, नानां बाळकोने तथा अंध बहेनोने पण आत्मानुं
निःसंदेहभान थई शके छे.
२. मोरबी पासे ववाणीया गामे श्रीमद् राजचंद्र थई गया; तेमने सात वर्षनी वये जातिस्मरणज्ञान
थयेलुं. एकवार पाडोशमां वृद्ध पुरुषनुं अवसान थयुं, तेमने ठांठडीमां बांधी लई जता जोई, आ शुं? ते
जाणवानी जिज्ञासा थई. ज्यारे लोको स्मशानभूमिमां तेना शरीरने अग्निसंस्कार करता हता, ते वखते
त्यांथी दूर आवेला एक बावळना झाड उपर चडीने ते द्रश्य जोतां जोतां श्री राजचंद्र एवा विचारमां चडी
गया के आ शरीरमांथी एवुं क्युं तत्त्व चाल्युं गयुं के जेथी तेना शरीरने आ लोको बाळी नाखे छे. आवा
विचारने परिणामे विक्रम सं. १९३१ मां तेमनी सात वर्षनी उंमरे तेमने जातिस्मरण ज्ञान थयुं. एटले के
आत्मा (जीव) आ देह पहेलां क्यां हतो तेनुं स्मरण थई आव्युं. विचारधारानी निर्मळताथी पूर्वे हुं क्यां
हतो ए जाणी शकवानी ताकात दरेक जीवमां छे.
३. थी १६ वर्षनी वय पहेलां तेओ लखे छे के– “रात्री व्यतिक्रमी गई, प्रभात थयुं, निद्राथी जागृत
थया, हवे भावनिद्रा टाळवानो प्रयत्न करजो”. पोतानुं असली स्वरूप भूली जवुं ने परने पोतानुं
मानवारूप जे अज्ञानरूपी भावनिद्रा छे तेने सम्यग्ज्ञानवडे टाळी शकाय छे. आ आत्मा सच्चिदानंद स्वरूप
छे, देहमां रहेलो होवा छतां देहथी जुदो अतीन्द्रिय ज्ञानमय–आनंदमय छे. ते भूली देहमां आत्मबुद्धि
करवाथी दुःखी थाय छे.
४. एमणे १६ वर्षनी वये ‘मोक्षमाळा’ नामनुं पुस्तक लखेल छे, तेमां ‘अमूल्यतत्त्वविचार’ नामे
एक पाठ छे तेमां लखे छे के:–
“बहु पुण्य केरां पुंजथी शुभदेह मानवनो मळ्यो, तोये अरे, भवचक्रनो आंटो नहीं एके टळ्यो”
आंख न मळी तेथी शुं? मनुष्य अवतार तो मळ्यो छे ने! ते घणा पुण्यथी मळ्यो छे. शरीरमां
आंखनो भाग ठीक न होवा छतां मनुष्यपणानी पांचे ईन्द्रियोनो उघाड (–विकास) लईने आव्यो छे. चक्षु
संबंधी विकास होवा छतां तेनो उपयोग नथी, आत्माना खरां नेत्र तो अंतरंगना ज्ञान–दर्शन छे,