: २० : आत्मधर्म : २२प
वाळां जीवोने जे सुख प्राप्त थाय छे तेने खरूं सुख कहेवातुं नथी. कारण के ते विषय सेवन करता
पहेलां, सेवन समये अने अंतमां केवळ संताप ज आपे छे. विद्वान पुरूष तो एवा सुखने ईच्छे छे के
जेमां विषयोथी मननी निवृत्ति थई जाय छे, चित्त संतृष्ट थाय छे परंतु एवुं सुख ए विषयांध पुरूषोने
केवी रीते प्राप्त थई शके के जेनुं चित्त सदा विषय प्राप्त करवामां ज खेद खिन्न बन्युं रहे छे.
विषयोनो अनुभव करवाथी जीवोने जे सुख थाय छे ते पराधीन छे, बाधाओ सहित छे,
व्यवधान सहित छे, अने कर्मबंधनुं कारण छे. एटला माटे ते सुख नथी पण दुःख ज छे. ए विषय
विष समान अत्यंत भयंकर छे के जे सेवन करती समये ज सारुं लागे छे. खरेखर ए विषयोथी उत्पन्न
थयेलुं मनुष्योनुं सुख खुजलीने खंजोळवाथी उत्पन्न थयेला सुख समान छे अथवा जेम खुजली
खंजोळती वखते सुख भासे छे परंतु पाछळथी बळतरा उत्पन्न थवाथी उलटुं दुःख थाय छे. एवी रीते
ए विषयोनुं सेवन करवाथी ए समये तो सुखनी कल्पना थाय छे परंतु पछी तृष्णानी वृद्धि थवाथी
दुःख थाय छे. जेवी रीते बळेला घा उपर घसेला चंदननो लेप जराक थोडोआराम उत्पन्न करे छे एवी
रीते विषय सेवन करवाथी उत्पन्न थयेल मुर्छां ए समये जराक थोडो संतोष उत्पन्न करे छे. तेने सुख
केम कहेवाय?
ज्यांसुधी गुमडानी अंदर बगाड रहे त्यांसुधी चंदन आदिनो लेप लगाडवाथी स्थायी आराम तो
थई शकतो नथी एवी रीते ज्यांसुधी मनमां विषयोनी ईच्छा रहे छे त्यां सुधी विषय सेवन करवाथी
संताप अने तृष्णा तो रहे छे तेथी तेमां स्थाई सुख केम कहेवाय?
स्थायी आराम अने सुख तो त्यारे प्राप्त थाय छे के ज्यारे गुमडानी अंदरथी बगाड अने मननी
अंदरथी विषयोथी ईच्छा काढी नाखवामां आवे. जेवी रीते विकारवाळो घा थवाथी तेने क्षार युक्त
शस्त्रोथी कापवानो उपाय करवामां आवे छे तेवी रीते विषयोनी ईच्छारूपी रोग उत्पन्न थवाथी एने
दूर करवाने माटे विषय सेवन करवामां आवे छे; अने आ रीते जीवोनुं आ विषय सेवन केवळ
रोगोनो उपाय ज ठरे छे.
जेवी रीते लीमडानो कीडो लींबडाना कडवा रसने आनंददायी मानीने एमां तल्लीन रहेतो थको
आनंद माने छे, अथवा जेवी रीते विष्टानो कीडो एना दुर्गंधयुक्त अपवित्र रसने उत्तम समजी एमां
रहेतो थको आनंद माने छे, एवी रीते आ संसारी जीव संभोग जनित दुःखने सुख मानीने एमां
तल्लीन रहे छे. विषयोनुं सेवन करवाथी प्राणीओने फकत मुर्छां अने प्रेम ज उत्पन्न थाय छे जो ते
प्रेमने ज सुख मानवामां आवे तो विष्टा आदि अपवित्र वस्तुओने खावामां पण सुख मानवुं जोईए,
कारण के विषयी मनुष्य जेवी रीते प्रेमने मेळवीने प्रसन्नताना विषयोने उपभोग करे छे एवी रीते
कुतरा अने भुंड–सूवरोनो समूह पण प्रसन्नतानी साथे विष्टा आदि अपवित्र वस्तुओ खाय छे. अथवा
जेवी रीते विष्टाना कीडाने विष्टाना रसनुं पान करवुं तेज उत्कृष्ट सुख लागे छे. एवी रीते विषय
सेवन करवानी ईच्छावाळा प्राणीओने पण निंदनीक विषयोनुं सेवन करवुं उत्कृष्ट सुख लागे छे–भासे
छे. जे पुरुष स्त्रीआदि विषयोनो उपयोग करे छे तेनुं आखुं शरीर ध्रुजवा लागे छे. श्वास तीव्र रीते
चाले छे अने आखुं शरीर परसेवाथी तरबोळ थई जाय छे. जो संसारमां आवो जीव पण सुखी
मानवामां आवे तो तो पछी दुःखी कोण हशे? जेवी रीते पोताना दांतोथी हाडकुं चावतो कूतरो पोताने
सुखी माने छे तेवी रीते जेनो आत्मा विषयोथी मोहीत थई रह्यो छे एवो मुर्ख जीव पण विषय सेवन
करवाथी उत्पन्न फकत परिश्रमने ज सुख माने छे. आथी नक्की थाय छे के कर्मोना क्षयथी अथवा
उपशमथी जे स्वाभाविक आनंद उत्पन्न थाय छे ते ज सुख छे. ते सुख अन्य वस्तुओना आश्रयथी
कदीपण उत्पन्न थतुं नथी.
हवे कदाचित् आ प्रमाणे कहो के स्वर्गमां रहेवावाळा देवोने परिवार तेमज ऋध्धि आदि
सामग्रीथी सुख थाय छे परंतु अहमिन्द्रोने ते सामग्री नथी एटले एना अभावमां एमने सुख क््यांथी
प्राप्त थई शके? तो आ प्रश्नना समाधानमां आ बे दलीलो रजु करीए छीए.