Atmadharma magazine - Ank 225
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd. No. B 5669
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छ ए द्रव्योनी स्वतंत्रता दर्शक
छ सामान्य गुणो
(१) अस्तित्व गुण–
कर्ता जगतनो मानता जे कर्म वा भगवानने,
भूली रह्या ते द्रव्यना अस्तित्व गुणना ज्ञानने
जन्मे–मरे नही कोई वस्तु धु्रव स्वाधीनता लहे,
अस्तित्वनी श्रद्धा वडे निर्भय सुखी सौ थई शके.
(२) वस्तुत्व गुण–
वस्तुत्व गुणना कारणे करता सहु निज कार्य ने,
स्वाधीन गुण–पर्यायनुं निज धाममां वसवुं बने;
सामान्य धु्रव विशेष क्रम द्वारा करे निज कामने,
वस्तुत्वगुण एम जाणीने पामो विमळ शिव धामने.
(३) द्रव्यत्वगुण–
द्रव्यत्वगुणना कारणे हालत सदा पलटाय छे.
कर्ता न हर्ता कोई छे सहु टकीने बदलाय छे;
स्व द्रव्यमां मोक्षार्थी थई स्वाधीन सुख ल्यो सर्वदा.
स्वाश्रयपणुं जाणी करो द्रव्यत्वनी श्रद्धा महा.
(४) प्रमेयत्व–
प्रमेयत्वगुणना कारणे सहु ज्ञानना विषयो बने,
परथी न अटके ज्ञान ए जाणो सहु बुद्धि वडे;
आत्मा अरूपी ज्ञेय निज आ ज्ञान तेने जाणतुं,
छे स्व–पर सत्ता विश्वमां निःशंकताथी मानवुं,
(प) अगुरुलघुत्वगुण–
अगुरुलघुत्वगुणना कारणे, सदा निजरूप रहे,
को द्रव्य बीजा गुणमां न भळे, न विखरी जाय छो;
निज गुण–पर्यायो बधा रहेतां सतत निज भावमां
कर्ता न हर्ता अन्यको ए नियम नित्ये छे. महा
(६) प्रदेशत्वगुण–
प्रदेशत्वगुणना कारणे आकार वस्तु मात्रने,
निज क्षेत्रमां व्यापकपणे, स्वाधीनता राखी रहे;
आकारनी महत्ता नथी, बस स्वानुभवमां सार छे,
सामान्य ने विशेषगुणथी तत्त्व श्रद्धा थाय छे.
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दि. जैन स्वा. मं ट्र. वती मु–प्र. हरिलाल देवचंद आनंद प्रेस–भावनगर