Atmadharma magazine - Ank 226
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष १९ अंक १०) तंत्री जगजीवन बाउचंद दोशी (श्रावण: २४८८
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पोतानी तैयारी विना स्वाधीनता
(मुक्ति सुख) केम पमाय?
भाईओ! भगवाननी भवच्छेदक वाणी पोतानी तैयारी विना
निमित्त केम कहेवाय! अनंत भवना दुःख टाळे एवी समजणना उत्तम टाणां
आ मनुष्य भवमां मळ्‌यां छे फरी फरी आवो अवसर मळतो नथी. तो पछी
परनुं कर्तृत्व ममत्व छोडी ज्ञायकस्वभावनां श्रद्धान–ज्ञान–आचरणनो प्रयत्न
कर के जेथी देहरहित दशानी (निजपरमात्मपदनी) प्राप्ति थई जाय.
रागद्वेष अज्ञान रहित पोतानुं त्रिकाळी निर्दोष सत्स्वरूप छे तेने ज
स्वानुभवथी समजवुं छे. तेमां ज ठरवुं छे, ते सिवाय बीजुं कांई जोईतुं नथी
एवो निर्णय सत्स्वरूपना लक्षे करी, पूर्वनी मान्यतानी पक्कड साची
समजण वडे छोडी निर्दोष स्वरूप सत्समागमथी तारे ग्रहण करवुं जोईए.
तारी तैयारी विना, अंदरनी अपूर्व धगश विना शुं थाय?
(समयसार प्रवचन भा–१मांथी)
कोण कोनी समता करे, सेवे पूजे कोण.
कोनी स्पर्शास्पर्शता, ठगे कोई ने कोण
कोण कोनी मैत्री करे कोनी साथे कलेश,
ज्यां देखुं त्यां सर्व जीव शुद्ध बुद्ध ज्ञानेश. (योगेन्दुदेव)
(२२६)