ब्रह्मचर्य अंक
श्री पद्मनंदि आचार्ये पद्मनंदि पंचविंशतिकाना ब्रह्मचर्यरक्षावर्त्यधिकार:
गाथा २ जी पाने ३३३, मां कह्युं छे.
ब्रह्मचारी कौन होसक्ता है इसबातको आचार्य वर दिखाते हैः–
आत्मा ब्रह्मविविक्तबोधनिलयो यत्तत्र चर्यं परं
स्वांगासंगविवर्जितैकमनसस्तदब्रह्मचर्यं मुनेः। एवं सत्यवलाः स्वमातृ भगिनी
पुत्रीसमाः प्रेक्षते वृद्धाद्या विजितेन्द्रियो यदि तदा स ब्रह्मचारी भवेन्।
अर्थ:– शरीर प्रत्ये आसक्तिथी ‘रहित जेमनुं मन छे अर्थात् जे मुनिना
मनमां शरीर संबंधी जरा पण आसक्ति नथी एवा मुनिनो समस्त पदार्थोथी
भिन्न तथा ज्ञानस्वरूप आत्मा छे ते ज ब्रह्म छे, अने ते ब्रह्ममां चर्या अर्थात्
एकाग्रता छे ते ब्रह्मचर्य छे. आवुं ब्रह्मचर्य होतां वृद्ध आदि स्त्रीओने पोतानी
माता, बेन, पुत्री समान जे देखे छे ते व्यवहारे ब्रह्मचारी छे.
महावीरना बोधने पात्र कोण?
ब्रह्मवृत्तमां प्रीतिमान (श्रीमद् राजचंद्रजी)
महा सौंदर्यथी भरेली देवांगनाना क्रीडाविलास निरीक्षण करता छतां
जेना अंतःकरणमां कामथी विशेष विशेष विराग छूटे छे, तेने धन्य छे, तेने
त्रिकाळ नमस्कार हो!
(श्रीमद् राजचंद्रजी)