Atmadharma magazine - Ank 229
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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सम्यक्
सिद्धांत
(१) सम्यक् सिद्धांत ‘उपादाननी प्रभुता’ नी प्रसिद्धि करे छे, –मिथ्यासिद्धांत ‘निमित्तनी
आधीनता’ नी प्रसिद्धि करे छे.
(२) अज्ञानी आत्मानी तो अनादिकाळथी परद्रव्यो पाछळ पडवानी टेव छे के जे घणी ज
दुःखदाता टेव छे, अने तेथी ज स्वभाववान वस्तुनुं सामर्थ्य ते मानतो नथी; रागमां अने
परज्ञेयोमां कर्तापणानी बुद्धि शुं ते जाणतो ज नथी. पछी गमे तेटला ग्रन्थो वांचे,
शुभरागनी पाछळ पडे तेथी शुं? आत्मा अने आस्रवोना भेदज्ञान विना ते अनंत
संसारनुं साधन करे छे.
(३) एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कोई अपेक्षाए कांई करी शकतो नथी, केमके एक द्रव्यनां स्वद्रव्य,
स्वक्षेत्र, स्वकाळ अने स्वभावमां परद्रव्यनां चतुष्टयनो त्रणेकाळ माटे अत्यंत अभाव छे–
तेने नहि माननार संयोगमां एकताबुद्धिवडे भले परथी भलुं–भुंडुं थवुं माने, परद्रव्योनो
हुं कर्ता, भोक्ता अथवा स्वामी छुं एम माने परंतु कोईपण द्रव्य पोतानां द्रव्य, क्षेत्र, काळ,
भावमांथी बहार नीकळीने एक अंशमात्र पण परद्रव्यने पहोंची वळवा समर्थ नथी, केमके
परनां काम माटे दरेक द्रव्य तेना गुण अने पर्याय अलायक छे–अयोग्य छे.
(४) ज्ञान परज्ञेयोमां जतुं नथी अने ज्ञेयो ज्ञानमां आवतांनथी, ज्ञानी परवस्तुने अंगीकार
करतो नथी (पोते परनां ग्रहण त्याग करी शके छे एम ते मानतो नथी.) अज्ञानी परथी
एटले पराश्रयथी लाभ मानवानी श्रद्धाने छोडतो नथी.
(प) दरेक द्रव्य स्वचतुष्टयथी सदा अखंड छे, तेथी तेमां स्वरूपथी एकत्व अने अनंता परथी
अनंत अन्यत्व छे द्रव्यनो कोई अंश अन्यनुं कांईपण करवा समर्थ नथी. पोताना आश्रये
अनंतगुणनी पर्याय दरेक समये थती होवाथी. पोतानी अनंत पर्यायनी उत्पाद–व्ययरूप
कार्यधाराने छोडी परंतु कार्य करवानी फुरसद एक समय पण लेतुं नथी, तथा कोई द्रव्य
पोतानुं कार्य कर्या विना रहेतुं नथी.
(६) वस्तुनी कोई शक्ति परनी अपेक्षा राखती नथी, छतां अज्ञानी परमां कर्तापणानो अहंकार
करे छे–अने तेथी दुःखी थाय छे.
(७) बहिर्मोहद्रष्टि छोडी वस्तुस्वभावने स्वाश्रयद्रष्टिथी देखे तो स्वसन्मुख ज्ञातापणानी
धीरजवडे जीव सुखी थाय.