Atmadharma magazine - Ank 230
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष २० : अंक रजो] तंत्री : जगजीवन बावचंद दोशी [मागशर : २४८९
पात्रे प्रभुता प्रगटे
‘तुं तैयार था, तो ते दूर नथी.
जेम हीरानो धंधो शीखवो होय तो प्रथम परीक्षक थाय पछी
तेना विशेष अभ्यासथी अनेक कळा खीले, तेम जेवुं सर्वज्ञ वीतरागे
साक्षात् ज्ञानथी जाणेलुं कह्युं छे अने जे त्रण काळमां न फरे एवुं परम
सत्य छे तेनो बराबर अभ्यास करी जाणे अनेअंतरमां तेनो मेळ करे
तो पूर्ण स्वभावनुं यथार्थ महात्म्य आवी अंतरनी समृद्धि बराबर
जाणी ले. पछी शास्त्रज्ञाननी सूक्ष्मतामां ऊंडो उतरे त्यारे केवळज्ञानना
दरोडा थाय एवो आनंद अनुभवे. जेम चोपडानुं पानुं फरे अने सोनुं
झरे तेम अहीं समयसारना पाने पाने केवळज्ञाननी सम्यक्कळा उघडे
एवुं छे. ते जातनी पात्रता बधामां भरी छे. तैयार थाय तो वस्तु दुर
नथी.
(समयसार प्रवचन भा. १ पृ. प३९)
“मेरोधनि नहीं दूर दिशान्तर मों महीं है मुजै सुजत नीके”
निज परम वैभवनो मालिक चैतन्यस्वामी क््यांई दूर देशान्तर
नथी, अंतरद्रष्टिथी जोतां मने सम्यक्प्रकारे देखाय छे.
(कविवर बनारसीदासजी)
[२३०]