अवलोके छे.
नथी. गुण सामान्य एकरूप नित्य रहे छे तेना विशेषरूप कार्यने पर्याय कहे छे, ते तेनाथी छे; परद्रव्य,
परक्षेत्र, परकाळ, पर भावथी नथी, परना कारण कार्यपणे नथी. सम्यग्द्रष्टि जीव शरूआतथी ज स्व–
परने आ रीते स्वतंत्र जाणे छे अने पोतानी अकारणकार्यत्व आदि अनंत शक्तिओने धारण करनार
पोताना आत्मद्रव्यने पोतापणे माने छे, तेने ज उत्कृष्ट–ध्रुव अने शरणरूप माने छे. स्वद्रव्यने
कारणपणे अंगीकार करवाथी तेनुं कार्य निर्मळश्रद्धा–ज्ञान–आनंदपणे प्रगट थवा लागे छे, तेमां कोई
संयोग के शुभविकल्प–व्यवहारने कारण बनावे तो शुद्धता थाय एम नथी.
आत्मामां अनादि अनंतपणे एक साथे छे. तेथी तेनो आदिअंत नथी. तेमां अकार्यकारणत्व शक्ति
एम बतावे छे के आत्मामां ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, स्वच्छता, प्रभुत्व आदि गुणो अने तेमनी
तेमना विकासरूप पर्याय दरेक समये उत्पाद व्ययरूप–तेनाथी ज थया करे छे. छे ते तेनाथी करवामां
आवता होवाथी परद्रव्य परक्षेत्र परकाळादि वडे करवामां आवता नथी. ज्ञानीने नीचली दशामां राग
होय पण ते शुभराग वडे आत्माना गुणनी पर्यायनुं उपजवुं–वधवुं के टकवुं नथी. आत्मा स्वयंनिज
शक्तिथी अखंड अभेद छे, तेना आश्रयथी स्व सन्मुखतारूप पुरुषार्थथी भूमिकानुसार निर्विकल्प
वीतराग परिणामरूपे अनंतगुणनी पर्यायोनो उत्पाद प्रत्येक समये थया ज करे छे; तेनुं होवापणुं,
उपजवा, बदलवा अने टकवापणुं आत्मद्रव्यना आश्रये ज छे, परना लीधे त्रणकाळमां नथी.
व्यवहारथी (–शुभरागना आश्रये) त्रण काळमां नथी. राग तो चैतन्यनी जाग्रतीने रोकनार विरुद्ध
भाव छे, आस्रव छे. आस्रव तो बंधनुं ज कारण छे; बंधनुं कारण ते मोक्षनुं कारण थई शकतुं ज नथी.
व्यवहार साधन अने निश्चय साध्य एवुं कथन होय त्यां एम समजवुं के एनो अर्थ एम नथी पण
स्वद्रव्यना आश्रये वीतरागता प्रगटे त्यां निमित्तरूपे कई जातनो राग हतो, तेनाथी विरुद्ध जातनो
राग निमित्तपणे नहतो एम बताववा तेने व्यवहार साधन कहेवाय छे तथा आ जातना रागरूप
निमित्तनो अभाव करीने जीव वीतरागता प्रगट करे छे एम बताववा माटे ते जातना शुभरागने–
व्यवहार रत्नत्रयने परंपरा मोक्षनुं कारण कहेवामां आवे छे पण खरेखर राग ते वीतरागतानुं खरुं
कारण थई शके नहीं एम प्रथमथी ज निर्णय करवो जोईए.
अकारण कार्यत्व शक्ति पण द्रव्यमां, गुणमां अने पर्यायमां व्यापे छे; एनी स्वाधीनतानी द्रष्टि,
स्वाधीनतानुं ज्ञान अने आचरण न करतां पराश्रयनी रुचि राखीने द्रव्यलिंगी मुनि अनंतवार थयो
तेथी शुं? “द्रव्य संयमसे ग्रैवेयक पायो, फेर पीछे पटक्यो’ . एकला शुभमां–पुण्यमां वधु वखत कोई
जीव रहे नहीं, पुन्यनी पाछळ पाप आवेज छे.