Atmadharma magazine - Ank 231
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : २३१
करी ले छे. जुओ, जे पुरूष एक मुहूर्त माटे पण सम्यग्दर्शन प्राप्त करी ले छे, ते आ संसाररूपी वेलने
मूळमांथी कापीने घणी टूंकी करी नांखे छे; तेनो अनंतो संसार टळी जाय छे. जेना हृदयमां सम्यग्दर्शन
विद्यमान छे ते उत्तम देव अने उत्तम मनुष्य पर्यायमां ज जन्मे छे; एने नारकी अने तिर्यंचना खोटा
जन्मो कदी पण थता नथी. आ सम्यग्दर्शनना विषयमां अधिक कहेवाथी शुं सार छे? एनी तो आ
प्रशंसा पूरती छे के सम्यग्दर्शन प्राप्त थवाथी अनंत संसार पण सांत (अंत सहित) थई जाय छे. हे
आर्य, तुं मारा कहेवा प्रमाणे अर्हंतदेवनी आज्ञाने प्रमाण मानतो थको अनन्य थईने बीजा रागी द्वेषी
देवताओनी शरणमां न जईने सम्यग्दर्शननो स्वीकार कर. जेवी रीते शरीरना हाथ पग आदि अंगोमां
मस्तक प्रधान छे, अने मुखमां नेत्र प्रधान छे, तेवी रीते मोक्षना समस्त अंगोमां गणधर आदि देव
सम्यग्दर्शनने ज प्रधानअंग माने छे, हे आर्य, तुं देवमूढता, लोकमूढता, अने पाखंडमूढतानो त्याग कर
के जेथी मिथ्याद्रष्टि जेने प्राप्त न करी शके एवां सम्यग्दर्शनने उज्जवल कर. विशुद्ध सम्यग्दर्शन धारण
कर. तुं सम्यग्दर्शनरूपी तलवारद्वारा दीधं संसाररूपी लतानेकाप. तुं अवश्य निकट भव्य छो अने
भविष्यमां तीर्थंकर थवावाळो छे. हे आर्य, आ प्रकारे में अर्हंत भगवाने कह्यां अनुसार सम्यग्दर्शननो
विषय लई आ उपदेश कर्यो, ते मोक्षरूपी कल्याणनी प्राप्ति माटे तारे अवश्य ग्रहण करवो जोईए.
(वधु आवता अंके)
चोकीदार
जेना हृदयमां द्वारपाळनी जेम हितअहितनो विचार करवामां चतुरमति कल्लोल
करे छे, तेना हृदयमां स्वप्नामां पण पापनी उत्पत्ति थवी कठिन छे.
भावार्थ:– जेम चतुर द्वारपाळ अजाण्या मेला अने असभ्यजनोने घरमां प्रवेश
करवा देतो नथी तेम समीचीनबुद्धि पापबुद्धिने हृदयमां डोकयुं पण करवा देतीनथी.
(संवरभावना–ज्ञानार्णव श्लोक १०)
खास नवुं प्रकाशन
समयसार प्रवचन भाग १ (बीजी आवृत्ति) पृ० ६प०
पू० गुरुदेव श्री कानजी स्वामी द्वारा, समयसारजी गा० १ थी १३ सुधीनां
विस्तारथी प्रवचन, खास घटाडेल मूल्य ४–०० पोस्टेज १–८० अलग.