Atmadharma magazine - Ank 232
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष २० : अंक ४थो] तंत्री : जगजीवन बावचंद दोशी [महा : २४८९
(राग कल्याण)
चेतन परसों प्रेम बढ्यो.
स्व–पर विवेक बिना भ्रम भूल्यो मैं मैं करतो रह्यो. चे.
नरभव रतन जतन बहुतैं करि, कर तेरैं आई चढ्यो,
सु कयौं विषय सुख लागि हारिये, सब गुन गठनि गठ्यो. चे.
आरंभमें १कुसियार कीट ज्यौं आपुहि आपु मढ्यो,
‘रूपचंद’ चित चेतत नाहि नै, सुक ज्यौं व्यर्थ पढ्यो.
चेतन परसौं प्रेम बढ्यो. (१–रेशमनो कीडो. सुक=पोपट)
ज्ञानीए कहेली मैत्री, प्रमोद, करुणा अने उपेक्षा. मैत्री=सर्व
जगतथी निर्वैर बुद्धि, प्रमोद=कोईपण आत्माना गुणो जोईने प्रसन्नता,
करुणा=संसार तापथी दुःखी आत्मानादुःखथी अनुकम्पा पामवी.
उपेक्षा=निस्पृह भावे जगतना प्रतिबंधने विसारी आत्महितमां आववुं.
ए भावनाओ कल्याणमय अने पात्रता आपनारी छे. (श्री राजचंद्रजी)
आ प्राणी धन, यौवन, जीवन जलना बुदबुदानी माफक तुरत
विलय पामी जतां जोवा छतां पण तेने नित्य माने छे, शरण माने छे ए
ज मोटुं आश्चर्य छे. मिथ्याअभिप्राय, काम, क्रोध, मान, माया, लोभ
ईत्यादि मोहना ज भेद छे. (स्वामी कार्त्तिकेयानुंप्रेक्षा–२१)
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