Atmadharma magazine - Ank 233
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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फागण: २४८९ : १प :
द्रव्यलिंगी व्रत, तप शास्त्रमां कह्या मुजबना आचरे छे छतां समस्त यति आचारना
समुदायरूप तपमां प्रवर्तनरूप कर्मकांडनी धमालमां तेओ अचलित रहेता होवाथी अनेक प्रकारना
रागमां ज प्रवर्ते छे.
त्रण कषायना अभावपूर्वक भावलिंगी संत छे तेओ चारित्रमां अंतर्मुख अतीन्द्रिय आनंदमां
झुले छे, तेमने परमात्मानी जातनो आनंद ऊछळे छे. जेम दरियामां हजारो नदीओनां पाणी आवे
छतां ओटना समये दरियो ऊछळतो नथी, अने ज्यारे प्रचंड ताप सहित सूर्य तपतो होय छतां भरती
वेळाए समुद्रमां ऊछळे त्यारे बहारनो गमे तेवो प्रतिकूळ संजोग होय छतां ते किनार पण ऊछळे ज
छे. तेमज भगवान आत्मा मध्यबिंदुमां – अंतरंग शुद्ध कारण परमात्मा शक्तिमां स्व–सन्मुख द्रष्टिथी
एकाग्रथतां अंतरनी बेहद शक्तिमांथी बेहद शान्तिनो ऊछाळ पर्यायमां प्रगटे छे तेमां बहारमां
ईन्द्रियोनी शिथिलता संयोगोनी प्रतिकूळता कदी नडती नथी.
परंतु जे जीव पोताना आ महिमाने जाणतो नथी ते कांतो शास्त्रोना शब्दो विभक्ति
अलंकारयुक्त वाणीमां अटके छे, कांतो धर्मना नामे एकला व्यवहारना आडंबरमां अटक्या छे कांतो
खावापीवानी शुद्धि वगेरे कर्मकांडनी धमालमां अटक्या छे. आ रीते स्वतत्त्वने भूलने परमां एकाकार
थाय छे.
राग मंद पड्यो होय तो तेटलो विकार घटे के केम? एम प्रश्न थाय तेनो जवाब–अज्ञानदशामां
राग मंद पडी शके, पण स्वसन्मुखता विना राग अंश मात्र पण घटतो नथी. शुभराग होय तो पुण््य
छे; पण परंतु तेनाथी वीतरागतारूप मोक्षमार्ग अर्थात् धर्म नथी. शुभरागमां सत्यार्थ धर्म मानवामां
आवे तो मिथ्यात्वरूपी महापाप थाय छे केमके शुभराग आस्रव तत्त्व छे, बंधनुं ज कारण छे, तेथी
शुभरागथी अंश मात्र विकार टळतो नथी. परलक्षे जेटलो भाव थाय छे ते राग छे अने स्वाश्रयनो
भाव छे तेमां राग नथी थतो. कषाय मंद करे तो पुण्य थाय, बाकी रागनी मंदताथी रागनो अंशे पण
अभाव कोई काळे थाय नहीं.
अरे! जेमने पोताना अनंत महिमावंत आत्मवैभवनो ख््याल नथी, अंतर परिपूर्ण
स्वभावनो महिमा अने विश्वास नथी, तेओ संयोग अने रागादिथी लाभ मानीने बाह्य व्रत, तप,
ब्रह्मचर्यने पाळे छे अने पोते घणुं कर्युं एम माने छे, परंतु तेमां खरेखर धर्म नथी.
ज्ञानी तथा अज्ञानीना प्रयोजनमां घणो ज तफावत छे. ज्ञानी पोताना शुद्धोपयोगमां न रही
शके त्यारे व्रतादि शुभराग आवे छे. ते पुण्यास्त्रवनी क्रियाने ज्ञानी हेय समजे छे, जराय आदरणीय
मानता नथी, तेना कर्त्ता थता नथी, पण ज्ञाता रहे छे. शुभरागने धर्म मानता नथी; त्यारे अज्ञानी
शुभरागरूप व्यवहारने तथा शरीरनी क्रिया, व्रत–तपादि शुभरागना आचरणने धर्म माने छे,
शुभरागने भलो माने छे, तेनो कर्त्ता थई प्रवर्ते छे. आम भ्रमथी धर्म माटे उंधी मान्यता=मिथ्यात्वने
पोषे छे. पुण््यक्रियाना शुभभावने निश्चयथी विषकुंभ कह्या छे, केमके ते आस्रव तत्त्व होवाथी झेर छे.
झेर छे तो तेने संवर तत्त्वरूपी अमृत साथे मेळवी शकाय नहीं.
आत्माने पुण्य पाप के संयोगनी अपेक्षा नथी. पोते ज निश्चयज्ञानमय अनंत शान्तिनो सागर
छे. शुभराग होय तोपण तेनो आश्रय अने अपेक्षा मोक्षमार्गमां नथी. आवा स्वरूपने न समजनार
बहारथी भले मोटा संत, साधु, पंडित, विद्वान, आचार्य नाम धरावता होय तोपण तेओ मिथ्याद्रष्टि
छे. रागना कारणे वीतरागता प्रगटे एम माने तेओ रागना दास छे, मिथ्यात्वना दास छे,
वीतरागताना जराय दास नथी.