रागमां ज प्रवर्ते छे.
छतां ओटना समये दरियो ऊछळतो नथी, अने ज्यारे प्रचंड ताप सहित सूर्य तपतो होय छतां भरती
वेळाए समुद्रमां ऊछळे त्यारे बहारनो गमे तेवो प्रतिकूळ संजोग होय छतां ते किनार पण ऊछळे ज
छे. तेमज भगवान आत्मा मध्यबिंदुमां – अंतरंग शुद्ध कारण परमात्मा शक्तिमां स्व–सन्मुख द्रष्टिथी
एकाग्रथतां अंतरनी बेहद शक्तिमांथी बेहद शान्तिनो ऊछाळ पर्यायमां प्रगटे छे तेमां बहारमां
ईन्द्रियोनी शिथिलता संयोगोनी प्रतिकूळता कदी नडती नथी.
खावापीवानी शुद्धि वगेरे कर्मकांडनी धमालमां अटक्या छे. आ रीते स्वतत्त्वने भूलने परमां एकाकार
थाय छे.
छे; पण परंतु तेनाथी वीतरागतारूप मोक्षमार्ग अर्थात् धर्म नथी. शुभरागमां सत्यार्थ धर्म मानवामां
आवे तो मिथ्यात्वरूपी महापाप थाय छे केमके शुभराग आस्रव तत्त्व छे, बंधनुं ज कारण छे, तेथी
शुभरागथी अंश मात्र विकार टळतो नथी. परलक्षे जेटलो भाव थाय छे ते राग छे अने स्वाश्रयनो
भाव छे तेमां राग नथी थतो. कषाय मंद करे तो पुण्य थाय, बाकी रागनी मंदताथी रागनो अंशे पण
अभाव कोई काळे थाय नहीं.
ब्रह्मचर्यने पाळे छे अने पोते घणुं कर्युं एम माने छे, परंतु तेमां खरेखर धर्म नथी.
मानता नथी, तेना कर्त्ता थता नथी, पण ज्ञाता रहे छे. शुभरागने धर्म मानता नथी; त्यारे अज्ञानी
शुभरागरूप व्यवहारने तथा शरीरनी क्रिया, व्रत–तपादि शुभरागना आचरणने धर्म माने छे,
शुभरागने भलो माने छे, तेनो कर्त्ता थई प्रवर्ते छे. आम भ्रमथी धर्म माटे उंधी मान्यता=मिथ्यात्वने
पोषे छे. पुण््यक्रियाना शुभभावने निश्चयथी विषकुंभ कह्या छे, केमके ते आस्रव तत्त्व होवाथी झेर छे.
झेर छे तो तेने संवर तत्त्वरूपी अमृत साथे मेळवी शकाय नहीं.
बहारथी भले मोटा संत, साधु, पंडित, विद्वान, आचार्य नाम धरावता होय तोपण तेओ मिथ्याद्रष्टि
छे. रागना कारणे वीतरागता प्रगटे एम माने तेओ रागना दास छे, मिथ्यात्वना दास छे,
वीतरागताना जराय दास नथी.