Atmadharma magazine - Ank 233
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४८९ : १७ :
थोडा वखतमां प्रसिद्ध थाय छे –
*मंगल तीर्थयात्रा **
पू. गुरुदेवे सम्मेदशिखरजी वगेरे तीर्थधामोनी संघसहित यात्रा करी
तेनां भावभीनां स्मरणो तेमज सेंकडो चित्रोथी सुशोभित नवीन प्रकाशन
झडपथी तैयार थई रह्युं छे. आ शैलीनुं आ पहेलुं ज प्रकाशन हशे;– जे
वांचता जाणे अत्यारे ज आपणे ए तीर्थधाममां विचरतां होईए– एवो
आह्लाद जागे छे, ने साधकभावनी उर्मिओनुं मधुर झरणुं केवुं होय तेनो
ख्याल आवे छे. अहीं ‘आत्मधर्म’ ना जिज्ञासु पाठकोने तेनुं थोडुं
रसास्वादन कराव्युं छे.
– ब्र. हरिलाल जैन.
“सम्मेदशिखर”! जेना दर्शन करतां अनंत सिद्धभगवंतोनुं स्मरण
थाय.. ने सिद्धपदने साधनारा तीर्थंकरो अने सन्तोनो समूह स्मृतिसमक्ष
तरवरतो थको आपणने मोक्षमार्गनी प्रेरणा जगाडे... एवा ए सिद्धिधामनी
यात्रा ते मुमुक्षु जीवननो एक आनंद प्रसंग छे.
रत्नत्रयतीर्थ प्रवर्तक तीर्थंकरो अने तेने साधनारा संतो जे भूमिमां
विचर्या... ने आ तीर्थंस्वरूप संतोना पवित्र चरणना प्रतापे चरणना प्रतापे जे
भूमिनो रजकणे रजकण पावन तीर्थ तरीके पूज्य बन्यो... एवी भारतनी आ
शाश्वत तीर्थभूमिनी मंगलयात्रा करवा माटे घणा भक्तोनां हृदय तलसी रह्या
हता... गुरुदेवना अंतरमां पण ए तीर्थधामने भेटवानी उर्मिओ जागती हती.