Atmadharma magazine - Ank 233
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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(सजोदमां) भोंयरामां प्रवेशीने जिनमुद्राना दर्शन करतांज गुरुदेव ‘जे भगवान’ कहेतांक
भगवाननी सामे घडीभर आश्चर्यथी थीजी गया. ए शीतलनाथ भगवाननी प्रतिमा अत्यंत सौम्य
वीतराग मुद्राधारी अने घणी प्राचीन छे... गुरुदेवे जीवनमां ६७ वर्षे पहेलीज वार अर्घ चडाववानी
शरूआत अहींथी करी. (अंकलेश्वर)... श्रुतधर सन्तोनी आ पावन भूमि बहु वहाली लागती हती.. जे
भूमिमां श्रुतनो महान उत्सव ऊजवायो अने ज्यां महान श्रुतधर संतमुनिवरो विचर्या ते श्रुतभूमिमां
आजे गुरुदेव जेवा श्रुतधर संतने विचरता देखीने सौ भक्तो बहु आनंदित थता हता.
... मुंबईनगरीना मुमुक्षुओ घणा काळथी गुरुदेवना आगमननी प्रतिक्षा करी रह्या हता, तेमनी
भावना आजे पूरी थतां सौनां हृदय उल्लासथी हालकडोलक थई रह्या हता.. लाखो लोकोए गुरुदेवना
दर्शन कर्या.. जाणे गुरुदेवना आगमने आखा मुंबईने आश्चर्यथी थंभावी दीधुं हतुं. जेम आत्मानी धून
आडे संसारनो मोह ऊडी जाय तेम तीर्थयात्रानी धून आडे मोहमयी मुंबई नगरीनो मोह ऊडी गयो.
आखो दिवस बधा यात्रिको यात्रानी तैयारीमां ज गुंथाई गया– जेम खरा आत्मार्थीनुं हृदय आत्मानी
शोधमां ज गुंथाई जाय तेम. यात्रिकोने भणकार वागता के जाणे सम्मेदशिखर उपरथी कोई संतो साद
पाडीने बोलावी रह्या छे... ने विपुलाचलना शिखरेथी’ कारध्वनिना मोजा काने अथडाई रह्या छे!
पोष सुद पूर्णिमा: पृथ्वी आनंदथी नाची रही छे.. भक्तोना हैयामां सिद्धिधामना स्मरणथी
हर्षनो सागर उल्लसी रह्यो छे... ने गुरुदेवनी पावनमुद्रा प्रसन्नताथी शोभी रही छे.. अहा!
भरतक्षेत्रना शाश्वत तीर्थधामनी मंगलयात्रा माटे आजे प्रस्थान थाय छे... भक्तोना हृदयनी भावना
आजे पूरी थाय छे.
तीर्थधाममां विचरता गुरुदेवने पण जाणे के आ बधो देश पोतानो जाणीतो ज होय एम लागे
छे. प्रवास दरमियान तेओ पण खूब ज प्रसन्नताथी यात्रासंबंधी चर्चा करे छे, आपणा धर्मपिता संत–
मुनिवरो अहीं विचर्या छे ने गुरुदेव साथे आपणा धर्मपिताना धाममां ज आपणे आव्या छीए– एम
ज सौने लागे छे.
... पर्वतनुं चढाण बहु अघरुं छे पण उपरनो देखाव एटलो बधो रळियामणो छे के चढाणनो
थाक भूलाई जाय छे, जेम निर्विकल्प वेदन वखते विकल्पनो थाक भूलाई जाय तेम. अहा! गुरुदेव
साथे अपूर्व यात्रा थाय छे ने अमने सिद्धभगवान देखाडे छे– एवा अनंदतरंगथी सौनां हृदय
उल्लसता हता. गुरुदेव साथे यात्रा करवानी होंसमांने होंसमां यात्रिको विकट मार्गने ओळंगी जता,
जेम मोक्षार्थी जीव मोक्ष लेवानां उत्साहमां वच्चे आवी पडता विभावोने ओळंगी जाय छे तेम.
... अहा, गुरुदेवना प्रवचनमां साधकभावनो अद्भुत प्रवाह वहेतो हतो... साधकभावनी धारा
उल्लसी–उल्लसीने जाणे के सिद्धपदने अभिनंदती हती... साधकना अंतरमां सिद्धपदनी केवी लगनी
होय छे ते व्यक्त थती हती... ने मुमुक्षु श्रोताओ तो मुग्ध बनी जता हता.
गुरुदेव देरी पासे जईने अंदर घूसी गया.. ने भक्तिथी स्तब्ध थईने कुंदकुंदप्रभुना चरण पासे
बेसी गया... गुरुशिष्यना मिलननुं ए द्रश्य अद्भुत हतुं... मोटा भगवानना चरण वच्चे ऊभेला
गुरुदेव भगवानना नानकडा नंदन जेवा शोभता हता... जिनेन्द्रदेव अने तेमना लघुनंदनना मिलननुं
आ भावभीनुं द्रश्य जोईने यात्रिको हर्षथी जयजयकार करता हता.
... सिद्धिधाममां विचरता आत्मा घणो प्रसन्न थाय छे... अहा, जाणे के सिद्धभगवंतोनो देश
गुरुदेव देखाडी रह्या छे, साधक संतो साथे सिद्धभगवंतोनी नगरीमां विचरता भक्तो संसारने भूली
गया छे.. ने तीर्थस्वरूप संतोनी साथे मंगल तीर्थयात्रानो महान लाभ लई रह्या छे.