जगतना वातावरणथी जुदा पाडीने, आ भोंयरामां ऊंडा ऊतरवुं पडतुं हतुं.. अंदर ऊतरीने मोटा
मोटा त्रण भगवंतोने नीहाळता ज गुरुदेव तो आश्चर्य पाम्या... अहा! जेम चैतन्यदर्शनथी आनंद
थाय तेम गुरुदेवने आ भगवानना दर्शनथी आनंद थयो. गुरुदेव कहे: “अहा! आपणे तो आ बधु
जीवनमां पहेलीजवार जोईए छीए.
चैतन्यपदनी पूर्णता पामता सुधी सदाय तेओनी साथेज रहीए एवी भावना व्यक्त करी.
तारणहारने आजे हुं तारी रही छुं, एवा गौरवथी ए जडमति नौका डोलती हती, परंतु ए बिचारीने
क्यांथी खबर होय के ते पोते पण आ संतपुरुषना पुण्य–प्रभावे तरी रही छे! अरे, भेदज्ञाननौकावडे
अनंत संसारसमुद्रने तरी जनारा साधकोने एक नानी नदी पार कवी तो शा हिसाबमां छे? खरेखर
ज्ञानीओनी नौका नीराळी छे.
कहानगुरु साथमां.......... जाय सिद्धिधाममां..........
छे, तो साक्षात् सिद्धपद प्रत्येना साधकोना अंतरंग... रंगनी शी वात! खरेखर साधकना भाव अचिंत्य
छे.
साक्षात् मुनि भगवंतोना टोळे टोळा नजर समक्ष तरवरता होय एवो प्रमोद तेमनी मुद्रा उपर वर्ती
रह्यो छे. अंतरनी उर्मिओ व्यक्त करतां गुरुदेवे कह्युं: अहा हुं तो आ क्षेत्रमां मुनिओने ज देखुं छुं;
आसपास जाणे मुनिओ ध्यान धरी रह्या होय एवुं अहींनुं वातावरण छे. केवुं सरस. शांतिनुं धाम
छे! भक्तोना उल्लासनुं पण शुं वर्णन करवुं!
पण ते खूब पीधुं छे–हृदयमां भरी लीधुं छे; हवे आ जे उपदेशामृत आपणे भरी लीधुं छे ते आपणी
पासेज रहेशे ने संसारमां सुखदुःख प्रसंगे ते आपणने शांति आपशे, आ पर्याय रहे त्यां सुधी ने
नवीन पर्यायमां पण आ उपदेशनुं मनन करवाथी घणो लाभ थशे. महाराज अपनी बात नहीं कहते,
महाराज तो जिनेन्द्रदेवने जो कहा वही कहते है, पोताने जिनभक्त कहेवडावनारा, महाराजनां
वचननो (के जे जिनेन्द्रदेवना वचन छे तेनो) विरोध कई रीते करी शके?