Atmadharma magazine - Ank 233
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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भूलाई जती हती. सिद्धक्षेत्रमां तो भक्ति खूबज खीली नीकळती, सिद्धिना साधकोने सिद्धक्षेत्र मली
जाय पछी एमनी भक्तिमां शुं बाकी रहे?
गुरुदेव पण अध्यात्मनी मस्तीथी जाणे के सिद्धभगवंतो साथे वातो करता होय.. के
सिद्धभगवंतोने साद पाडीने बोलावता होय ए रीते उपर नजर करीने हाथ वडे सिद्धालय तरफ निर्देष
करता थका कहे छे; जुओ आ सिद्धक्षेत्रमां सिद्धभगवंतोनुं स्मरण करीए छीए... आपणने याद रही
जशे के जात्रा वखते सिद्धक्षेत्रमां आ रीते सिद्ध भगवंतोने याद कर्या हता.
मंगल तीर्थयात्रा दरमियान सिद्धक्षेत्रमां गुरुदेवनां आवा भावभीनां प्रवचनो सांभळता
आत्मार्थी जीवोने चैतन्यना प्रदेशे प्रदेशे प्रमोद उल्लसतो ने तेओना हैयामांथी एवो उद्गारो छूटता के
जयवंत वर्तो गुरुदेव साथेनी आ आत्मवृद्धिकर मंगल तीर्थयात्रा!
यात्रानुं ध्येय होवाने लीधे यात्रिकोने आनंद अने उल्लास रहेतो हतो. बधा साधर्मीओ साथे
होवाथी, क््यारेक राते जंगलमां अटकी जवुं पडे तो पण मुश्केलीने बदले एक जातनी मजा आवती, ने
मुश्केलीना प्रसंग वखतेय नवी नवी भक्ति वगेरेनां प्रसंगथी वातावरण आनंदमय बनी जतुं ने
मुश्केलीओ भूलाई जती. आ रीते यात्राप्रवास आनंदथी चालतो हतो.
जेम, रत्नत्रयरूप धर्मतीर्थमां जीव जेम जेम आगळ वधतो जाय छे तेम तेम तेम तेनो आनंद
वधतो जाय छे, तेम गुरुदेव साथे तीर्थयात्रामां जेम जेम आगळ वधता जईए छीए तेम तेम
यात्रिकोने आनंद वधतो जाय छे.
आपने पण ए आनंदनुं रसास्वादन करवानुं दिल थाय छे नेो तो “मं... ग... ल... ती... र्थ...
या... त्रा...” पुस्तक आपने ए आनंदनुं थोडुंक रसास्वादन करावशे.
तीर्थभक्तिथी भरपूर अने तीर्थभूमिना सेंकडो चित्रोथी सुशोभित
“मंगलतीर्थयात्रा” पुस्तक थोडा वखतमां प्रसिद्ध थशे. अहीं ते पुस्तकमांथी
थोडाक अवतरणो आप्या छे. विशेष माटे “आत्मधर्म” जोता रहो.
आत्मधर्म
आपे छे वैशाख सुद बीजनी मंगलवधाई!
वैशाख सुद बीजनी मंगल वधाई लईने ‘आत्मधर्म’ नवा रंगढंगमां, नवी ज
शैलिथी आवी रह्युं छे. वैशाख मासनो पू. गुरुदेवनी जन्मजयंतिनो खास अंक वैशाख
सुद बीज पहेलां मेळववा माटे आप अत्यारथी ज आत्मधर्मना ग्राहक बनो. अमने
जणावतां आनंद थाय छे के आत्मधर्मनी लेखनव्यवस्था ब्र. हरिभाई जैन पुन:
संभाळी रह्या छे वैशाख मासनो अंक जिज्ञासुओने जरूर आह्लादित करशे.
आप ग्राहक न हो तो वैशाख मासथी पण आप ‘आत्मधर्म’ मंगावी शको छो,
मात्र एक रूपीओ लवाजम भरीने आप वैशाखथी आसो सुधीना छ मासना अंको
मेळवी शको छो.
वैशाख सुद बीजनी वधाई मेळववा तरत ज आत्मधर्मना ग्राहक बनो. फागण
सुद पूर्णिमा सुधीमां ग्राहकलीस्टमां आपनुं नाम लखावी देवा विनंति छे. जेथी अंकोनी
केटली नकल छपाववी ते नक्की थई शके. ‘आत्मधर्म’ ना विकास माटे सर्वे
जिज्ञासुओना सहकार तथा सलाहसुचनानी आशा राखीए छीए.
नवनीतलाल सी. झवेरी (प्रमुख)