Atmadharma magazine - Ank 234
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : २३४
रटण करता हता. अध्यात्मतत्त्व पण एवुं पचाव्युं हतुं के तेना परिणामे तेमने आंतरिक शान्ति वर्तती
हती अने जीवननी अंतिम पळे पण ते चालु रही हती.
तेमनी अमीरात पण एवी के जेथी सहुने तेमना प्रत्ये मान उत्पन्न थतुं अनेत्र तेमनी हाजरी
पण शोभास्पद बनी जती.
तेमनामां रहेल धार्मिक संस्कारनी जागृति रहे अने तेमनो आत्मा तेना बळवडे आगळ प्रगति
करीने शीघ्रपणे देह रहित अविनाशी परमानंददशानी प्राप्ति करे एवी भावना साथे तेमना कुटुंबीजनो
उपर आवी पडेल दुःखमां समवेदना प्रगट करीए छीए.
तेमना वियोगथी सोनगढ तथा राजकोटना दि. जैन संघने तथा भारतना दिगम्बर जैन
समाजने न पूरी शकाय एवी महान खोट पडी छे.
महात्मा गांधीजी आदि देशनेताओ तेमने त्यां राजकोटमां उतरता हता. तेओ राजकोटनी
राष्ट्रीयशाळाना ट्रस्टी तथा सौराष्ट्र हरीजन सेवक संघना प्रमुख हता. आम अनेक प्रकारे तेमनुं स्थान
गौरवभर्युं हतुं. चीवटभरी व्यवस्था, विचक्षणता, नीतिमयता, कुशळता आदि गुणोने लीधे वेपारी
आलममां पण तेमनुं नाम अने काम प्रख्यातिने पाम्युं हतुं.
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समकितीनो अनुभव
मुनिवरोना हृदयमां जे चैतन्य तत्त्वनी प्राप्ति थतां विकल्पो नष्ट
नमस्कार करो. राग तरफ न नमो, विकल्प तरफ न नमो चिदानंद
तत्त्वनुं बहुमान करीने ते तरफ ज नमो. आ ज विकल्पोने जीतीने फतेह
मेळववानी रीत छे. मुनिनी मुख्यताथी संबोधन कर्युं छे, ते वात
नीचली दशामां पण बधा समकितने लागु पडे छे, विकल्पोथी पार
थईने चैतन्य तत्त्वनो अनुभव करे त्यारे ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
बधाय सम्यग्द्रष्टिना अंतरमां आवो आभ अनुभव थयो होय छे.
(पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी वैशाख सुद बीज)