Atmadharma magazine - Ank 234
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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२४८९ : चैत्र : :
STOP PERS
धम्मो मंगलं उक्किठ्ठं
चैत्र सुद आठमना रोज पू. गुरुदेव वांकानेर शहेर पधारतां उमंगभर्युं
स्वागत थयुं; टाउन होलमां मांगलिक संभळावतां गुरुदेवे कह्युं के धर्म ते उत्कृष्ट
मंगळ छे. पुण्य–पाप रहित चिदानंदमूर्ति आत्मानु सम्यक्भान करतां अंतरमां
निर्विकल्प अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थाय ते अपूर्व धर्म छे, ने ते उत्कृष्ट मंगल
छे. एवा धर्मवंत जीवोने देवो पण नमस्कार करे छे. देवोने पुण्यना ठाठ छे पण
तेनो आदर छोडीने तेओ धर्मनो आदर करे छे एटले एवा धर्मना आराधक
जीवोनो देवो पण आदर करे छे. आवुं उत्कृष्ट मंगळ आत्मामां केम प्रगटे तेनी
आ वात छे. बपोरे समयसार गा. ७र उपर प्रवचन थयुं तेनो सार अहीं
आपवामां आव्यो छे.

भाई, आ तारा आत्मानी वात छे, तारा आत्मानी धर्मकथा छे. आत्मानी धर्मकथा वास्तविक
रुचिथी जीवे कदी सांभळी नथी, तेथी ते दुर्लभ छे जो के चैतन्यनी साधना तो स्वाधीन छे, तेमां परनी
ओशीयाळ नथी तेथी ते सुलभ छे. पण अनंतकाळथी ते नथी कर्यु तेथी दुर्लभ कहेवाय छे. (सुलभ ते
निश्चय छे, ने दुर्लभ कहेवुं ते व्यवहार छे.) अने बहारनी वस्तुनो संयोग (राजपद के स्वर्गपद पण)
जीव अनंतवार पूर्वे मेळवी चूक््यो छे तेथी तेमां कांई अपूर्वता नथी एटले तेने सुभल पण कहेवाय
छे; अने आत्माना प्रयत्नथी बहारनो संयोग आवतो नथी ते अपेक्षाए तेने दुर्लभ पण कहेवाय छे.
पण ते संयोगमा काई अपूर्वता नथी. अपूर्वता तो आ चैतन्यबिंब आत्मानुं भान करवुं तेमां छे.
अरे, आ चैतन्यनी कथा सांभळवा स्वर्गना देवो पण स्वर्गलोकमांथी आ मनुष्यलोकमां ऊतरे छे;
चैतन्यना महिमा पासे स्वर्गनी ऋद्धि अत्यंत तूच्छ छे. एवा चैतन्यनी ओळखाण करतां आत्माने
भवबंधन अटके छे, ने मुक्तिनो मार्ग हाथमां आवे छे.
आवा आत्मानी समजण विना अनंतकाळ बीजी