: २ : आत्मधर्म : २४८९
क्रियाओमां वित्यो... ए पंथे चालता चालता अनेक जुग वीत्या पण पंथडानो पार न आव्यो, न
आव्यो, –हरि हाथमां न आव्या... पण भाई, हरि एवो चैतन्य भगवान आत्मा ताराथी जराय
वेगळो नथी, तारा अंतरमां ज बिराजी रह्यो छे पण एना दर्शनमां बहारना अभिमान तने आडा
आव्या... देहनी क्रिया मारी ने विकारनी क्रिया मारी–एवी मिथ्याबुद्धिनो अहंकार तने भगवान आत्माना
दर्शनमां आडो आवे छे. छे तो अंदरमां, पण बहारथी जुदो पडीने अंदरमां आवे त्यारे देखायने!
एक क्षण मात्र पण जो भेदज्ञान करीने चैतन्यने अने रागने जुदा पाडे तो, जेम वीजळीथी
पर्वतना बे कटका थाय ते कदी रेणथी भेगा न थाय, तेम ज्ञानीने कदी ज्ञाननी ने रागनी एकता थती
नथी. भेदज्ञान करीने रागथी जुदो पड्यो त्या अंदरथी भणकारा आवी जाय छे के हवे आत्माने
भवभ्रमणना अंत नजीक आव्या.
भवभ्रमणमां चैतन्यनुं यथार्थ श्रवण–लक्ष–परिचय ने अनुभवन जीवे कदी कर्युं नथी. यथार्थ
श्रवण त्यारे कहेवाय के ज्यारे ते लक्षमां ल्ये... यथार्थ लक्ष त्यारे कहेवाय के ज्यारे परिचय करे, अने
यथार्थ परिचय त्यारे कहेवाय के ज्यारे अनुभवमां ल्ये. यथार्थ श्रवण अने लक्षपूर्वक अंतरमां रागथी
पार चैतन्यनो अनुभव करवो ते अपूर्व धर्म ने उत्कृष्ट मंगळ छे. (वांकानेर शहेरना प्रवचनमांथी)
छेल्ला समाचार
परम पूज्य गुरुदेव चैत्र सुद १ थी ७ सुधी मोरबी बिराजमान हता; ते
दरमियान चैत्र सुद ६ ने शनिवार ना रोज सवारे प्रवचन पछी तेओश्री ववाणीया
‘श्रीमद् राजचंद्र जन्मस्थान भवन’ मां पधार्या हता. गुरुदेव साथे श्रीमद राजचंद्र जेवा
अध्यात्मिक पुरुषनुं जन्मधाम जोवानी उत्सुकताथी पांचसो जेटला जिज्ञासुओ पण जुदा
जुदा गामेथी ववाणीआ आव्या हता ने आखो दिवस ववाणीयामां जन्मधामनुं
वातावरण उत्साहमय रह्युं हतुं. श्री जसाणी कुटुंब तेमज डो. जयंतिभाई पारेख
वगेरेए घणा प्रेमथी सुंदर व्यवस्था करी हती.
पू. गुरुदेव ववाणीया पधार्या बाद जन्मस्थान भवननुं अने तेमां रहेला
विधविध द्रश्योनुं अवलोकन कर्युं हतुं. बपोरे बे वागे ज्ञानमंदिर (–के ज्यां एक
बावळना झाड उपर सात वर्षनी वये श्रीमद् राजचंद्रजीने जातिस्मरणज्ञान थयुं होवानुं
प्रसिद्ध छे ते स्थाने बंधायेल ज्ञानमंदिर) मां गुरुदेव पधार्या हता. प०० जवेटला
जिज्ञासुओथी ज्ञानमदिर भरचक हतुं. त्यां अवलोकन बाद पू. बेनश्री–बेने “धन्य रे
दिवस आ अहो...” ए काव्य वैराग्यभीनी शैलीथी गवडाव्युं हतुं; तेमज गुरुदेवनी
आज्ञाथी ‘अपूर्व अवसर’ नी अंतिम बे कडिओ बोल्या हता. त्यारबाद ३।। थी ४।।
पू. गुरुदेवनुं प्रवचन जन्मधाम भवनमां थयुं हतुं. श्रीमद् राजचंद्रजीना वचनो उपर
गुरुदेवे सुंदर प्रकाश पाडीने अनेकान्तनुं रहस्य समजाव्युं हतु. प्रवचन बाद,
सम्यग्द्रष्टिनी परिणतिना महिमा संबंधी भक्ति पण त्यां ज पू. बेनश्री बेने करावी
हती. तेमज “जिनवर कहे छे के ज्ञान तेने सर्व भव्यो सांभळो...” ए अध्यात्म काव्य
पण गवडाव्युं हतुं. एम लगभग आखो दिवस ववाणीयामां आनंदपूर्वक कार्यक्रम
चाल्यो हतो. सांजे पू. गुरुदेव मोरबी पधार्या हतां.
पू. गुरुदेव वांकानेर सुखशांतिमां बिराजे छे. (ता. १ – ४ – ६३)