Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : १८ C :
मंगल जन्मोत्सव अंक
फळरूप परम अतीन्द्रिय सुखने प्रशंसे छे. अहो, शुद्धोपयोगना फळमां आवुं
अतीन्द्रिय सुख छे– एम जाणतां आत्माने तेनुं प्रोत्साहन मळे छे. केवुं छे
शुद्धोपयोगनुं सुख? ते १३मी गाथामां कहे छे–
अत्यंत, आत्मोत्पन्न, विषयातीत, अनुप, अनंत ने
विच्छेदहीन छे सुख अहो! शुद्धोपयोगप्रसिद्धने. १३.
अनादि संसारथी कदी जे आनंद पूर्वे एक क्षण पण नथी अनुभवायो
एवो अपूर्व, कोई परम अद्भूत आनंद धर्मीने शुद्धपयोगमां अनुभवाय छे.
अहा, अतीन्द्रिय परम आह्लाद जेनो स्वाद जीवे पूर्वे अनादि संसारमां कदी
चाख्यो नथी एवो परम आह्लाद शुद्धोपयोगीने स्वादमां आवे छे. पोताना
आत्माथी ज ते सुखनी उत्पत्ति थाय छे, बहारना कोई विषयोना अवलंबन
विना, आत्मामां जे परम सहज सुखनो समुद्र भर्यो छे तेमांथी ज शुद्धोपयोगवडे
ते अतीन्द्रिय सुख प्रगटे छे. जेमां कोई परना आश्रयनी अपेक्षा नथी, जेमां
ईन्द्रियोनुं के ईन्द्रियविषयोनुं अवलंबन नथी, चैतन्यना अंतरमां ज उपयोग
मुकीने आत्मा पोते पोताना आश्रयथी परम आनंदरूप परिणमे छे. आहा!
आत्माना ज आश्रये आत्मानो मोक्ष थाय छे. मोक्ष कहो के पूर्णानंदनी प्राप्ति कहो,
तेनी उत्पत्ति आत्माना ज आश्रये थाय छे. शुद्धोपयोग वडे आवो परम आनंद
अनुभवाय छे. जुओ तो खरा, आ शुद्धोपयोगनुं फळ! आवुं अतीन्द्रिय सुख
परम प्रशंसनीय छे–एम बतावीने आचार्यदेव आत्माने तेनुं प्रोत्साहन आपे छे.
अहा, जे सुखमां कोई संकल्प–विकल्प नथी, आत्मा सिवाय बीजा कोईनी जेमां
अपेक्षा नथी एवुं परम सुख शुद्धोपयोगीने होय छे.
ईन्द्रना वैभवना के चक्रवर्तीना वैभवना सुख ते बधाय सुखक रतां
शुद्धोपयोगना सुखनी जात ज जुदी छे, तेनी साथे कोईने सरखावी शकाता नथी,
माटे ते सुख अनुपम छे. आवा शुद्धोपयोगना फळने जाणीने हे जीव! तुं तेमां
प्रोत्साहित था! स्वभावना आश्रये जे सुख प्रगट्युं ते सदा टकी रहे छे,
अनंतकाळ टकी रहे छे; अने वच्चे तेमां भंग पडतो नथी. विच्छेद थतो नथी.
बहारमां गमे तेवी प्रतिकूळताना गंज हो–पण शुद्धोपयोगमां लीन सन्तोनुं सुख
विच्छिन्न थतुं नथी. आवुं परम सुख... ते केम प्रगटे? के शुद्धोपयोग वडे प्रगटे.
अहा, चैतन्यनुं आवुं सुख!! आवो आह्लाद!! आवो निरपेक्ष आनंद!! –ते
सर्वथा प्रार्थनीय छे, परम उपादेय छे. आवुं सुख शुद्धोपयोगवडे पमाय छे–माटे
ते शुद्धोपयोगमां मोक्षार्थी जीव पोताना आत्माने प्रोत्साहित करे छे. जुओ,
मोक्षार्थीने उत्साह शुभनो नथी, मोक्षार्थीने तो शुद्धोपयोगनो ज उत्साह छे...
आवा शुद्धोपयोग वडे प्राप्त थतुं जे परम सुख ते प्रार्थनीय छे.