तो पछी अज्ञानीना शुभनी तो वातज शी! ज्ञानीने शुभ वखते जेटली
शुद्धपरिणति छे ते तो मोक्षनुं ज अविरुद्ध कारण छे.
ते भावोमां तद्रूप थईने ते काळे परिणमे छे, कोई बीजाना कारणे ते परिणाम
थता नथी. एटले निमित्तना कारणे कोई पण परिणाम थाय ए वात न रही.
मोक्षनुं कारण नथी. ते तो पुण्यबंधनुं कारण छे.
थई तेटलो ज धर्म छे, तेटलुं ज मोक्षनुं कारण छे ने ते ज उपादेय छे.
विघ्न छे. धर्मी जाणे छे के आ शुभराग ते कांई मारी धर्मपरिणति नथी, मारी
धर्मपरिणति तो रागथी पार छे. शुभोपयोग तो बंधनुं कारण छे, ते उपादेय
नथी, शुद्धोपयोग ज उपादेय छे, ते साक्षात् मोक्षनुं कारण छे. शुद्धपरिणति अने
शुभपरिणति ए बंनेनी जात ज जुदी छे. शुभपरिणतिने तो बधा जीवो
स्थूळपणे जाणे छे. पण शुद्धपरिणति धर्मात्माना अंतरमां होय छे ते सूक्ष्म छे, ते
शुद्धपरिणतिने अज्ञानीओ जाणता नथी. ते तो शुभमां अने तेना फळमां सुख
मानीने रोकाई जाय छे, रागथी पार चैतन्यनुं अतीन्द्रिय–विषयातीत सुख शुं
चीज छे तेने ते जाणतो नथी. अरे, अशुभना फळमां तो नरकादिना घोर दुःख छे,
तेनी तो शी वात! ए तो अत्यंत हेय छे, दुरथी ज छोडवा जेवो छे; अने,
शुद्धपरिणति साथे नजीक वर्ततो जे शुभ उपयोग तेनुं फळ पण आकुळता ज छे
तेथी ते पण हेय छे. शुद्धोपयोगनुं फळ परम आनंद छे ते ज उपादेय छे.
करीने आचार्यदेव तेना