Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : १८ B :
मंगल जन्मोत्सव अंक
जुदुं छे. धर्मात्मानो शुभराग पण बंधनुं ज कारण छे ते कांई मोक्षनुं कारण नथी.
तो पछी अज्ञानीना शुभनी तो वातज शी! ज्ञानीने शुभ वखते जेटली
शुद्धपरिणति छे ते तो मोक्षनुं ज अविरुद्ध कारण छे.
जीव पोते परिणमनस्वभाववाळो छे. एटले धर्मपरिणतिरूपे के शुभ
अशुभपरिणतिरूपे पोतेज परिणमे छे; पोते ज पोताना परिणमनस्वभावथी ते
ते भावोमां तद्रूप थईने ते काळे परिणमे छे, कोई बीजाना कारणे ते परिणाम
थता नथी. एटले निमित्तना कारणे कोई पण परिणाम थाय ए वात न रही.
हवे पोताथी जे परिणाम थाय छे तेमां, जे शुद्धपरिणाम छे ते तो धर्म छे,
ते मोक्षनुं कारण छे. अने ते वखते शुभपरिणाम होय ते कांई धर्म नथी, ते
मोक्षनुं कारण नथी. ते तो पुण्यबंधनुं कारण छे.
अहा, केटली स्पष्ट वात!! परने कारणे तारा कोई परिणाम नहि, ने
तारा परिणाममां शुभ ते धर्म नहि. स्वभावने अवलंबीने जेटली शुद्धपरिणति
थई तेटलो ज धर्म छे, तेटलुं ज मोक्षनुं कारण छे ने ते ज उपादेय छे.
सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माने धर्मपरिणति तो सदाय वर्ते छे, ते धर्मपरिणति
होवा छतां तेनी साथे ज्यारे राग होय छे त्यारे ते धर्मीने मोक्षसाधनमां एटलुं
विघ्न छे. धर्मी जाणे छे के आ शुभराग ते कांई मारी धर्मपरिणति नथी, मारी
धर्मपरिणति तो रागथी पार छे. शुभोपयोग तो बंधनुं कारण छे, ते उपादेय
नथी, शुद्धोपयोग ज उपादेय छे, ते साक्षात् मोक्षनुं कारण छे. शुद्धपरिणति अने
शुभपरिणति ए बंनेनी जात ज जुदी छे. शुभपरिणतिने तो बधा जीवो
स्थूळपणे जाणे छे. पण शुद्धपरिणति धर्मात्माना अंतरमां होय छे ते सूक्ष्म छे, ते
शुद्धपरिणतिने अज्ञानीओ जाणता नथी. ते तो शुभमां अने तेना फळमां सुख
मानीने रोकाई जाय छे, रागथी पार चैतन्यनुं अतीन्द्रिय–विषयातीत सुख शुं
चीज छे तेने ते जाणतो नथी. अरे, अशुभना फळमां तो नरकादिना घोर दुःख छे,
तेनी तो शी वात! ए तो अत्यंत हेय छे, दुरथी ज छोडवा जेवो छे; अने,
शुद्धपरिणति साथे नजीक वर्ततो जे शुभ उपयोग तेनुं फळ पण आकुळता ज छे
तेथी ते पण हेय छे. शुद्धोपयोगनुं फळ परम आनंद छे ते ज उपादेय छे.
–आवा शुद्धोपयोगने आचार्यदेवे आत्मसात् कर्यो छे एटले के पोताना
आत्माने आवा शुद्धोपयोगरूपे परिणमाव्यो छे. ए रीते शुद्धोपयोगने आत्मसात्
करीने आचार्यदेव तेना