Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : १८ A :
मंगल जन्मोत्सव अंक
धर्मात्मानी धर्मपरिणति
धर्मात्माने सम्ग्दर्शनपूर्वक जेटली वीतरागपरिणति थई
छे तेटलो धर्म छे; तेनी साथे शुभोपयोग भले हो, पण ते
शुभोपयोग पोते कांई धर्मपरिणति नथी. –आम समजावीने
पछी आचार्यदेव शुद्धोपयोगनुं फळ वर्णवीने तेमां आत्माने
प्रोत्साहित करे छे. अहो, शुद्धोपयोगनो ए आनंद!!
(प्रवचनसार गाथा ११–१३ना प्रवचनोमांथी)

धर्मपरिणति अने शुद्धोपयोगपरिणति तेमां शुं फेर? धर्मपरिणति तो
सम्यग्दर्शन थयुं त्यारथी धर्मात्माने सदाय वर्त्या करे छे, ने शुद्धोपयोगपरिणति
तो क््यारेक क््यारेक थाय छे, सातमा गुणस्थानथी मांडीने उपरना गुणस्थानोमां
शुद्धोपयोगपरिणति सदाय होय छे. धर्मीने शुभोपयोग परिणति होय त्यारे पण
धर्मपरिणति तो साथे वर्ते ज छे, पंरतु शुभोपयोग वखते शुद्धोपयोगपरिणति
होती नथी.
अहीं, शुभोपयोग वखते पण धर्मपरिणति होय छे एम कह्युं, तेथी एम
न समजी लेवुं के शुभोपयोग ते धर्म छे. धर्म तो अंदर जेटली रागरहित परिणति
थई तेटलो ज छे; जे शुभराग रह्यो ते तो विरुद्ध परिणित छे, ते कांई धर्म नथी.
ते शुभरागमां कांई एवी ताकात नथी के मोक्षरूप कार्य करी शके. ते तो बंधननुं
ज कारण छे. मोक्षनुं कारण तो शुद्धपरिणति ज छे.
धर्मपरिणति जीवने शुभोपयोग होय तेनुं फळ शुं ते बताव्युं, पण तेथी
करीने धर्मपरिणत जीवना शुभोपयोगने आचार्यदेवे धर्म नथी कह्यो; ते शुभने
तो विरोधीकार्य करनार कह्यो छे. अविरुद्धकार्य एवो जे मोक्ष, तेनाथी विरुद्धकार्य
एटले बंधन, –शुभराग ते बंधननो कर्ता छे. शुद्धोपयोगरूप चारित्र तो मोक्षरूप
स्वकार्यने करवामां समर्थ छे; पण ते चारित्र ज्यारे शुभराग सहित होय त्यारे ते
रागना सद्भावने लीधे पोताना अविरुद्धकार्यने साधी शकतुं नथी; शुभराग
मोक्षथी विरुद्धकार्य करनारुं छे.
अहो, आचार्यदेवे आ गाथामां शुद्धपरिणतिनुं अने शुभरागनुं बंनेनुं
भिन्नभिन्न फळ बतावीने घणी स्पष्टताथी समजाव्युं छे. शुद्धपरिणतिनुं कार्य
मोक्ष, ने शुभपरिणतिनुं कार्य बंध, –आम बंनेना मार्ग जुदा छे. भले एक
जीवने बंने भावो साथे होय, पण बंनेनुं कार्य