Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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(पंडितरत्न भाईश्री हिंमतलाल जे. शाह (B. Sc.) ए, ‘आत्मधर्म’ ना
‘जन्मोत्सव अंक’ माटे लखी आपेली भावना अहीं रजु करतां अमने हर्ष थाय छे.)
आजे परमपूज्य परमोपकारी गुरुदेवनी जन्मजयंतीनो मंगळ उत्सव छे.
जन्मजयंती तो घणानी आवे छे, पण जे जन्ममां शुद्धपरिणतिनो जन्म थाय ते ज
जन्मजयंती खरेखर ऊजववा जेवी छे. आवी परममंगळ जन्मजयंती आजे ऊजवतां
आनंद थाय छे, परमपूज्य गुरुदेवे आ जन्ममां निजकल्याणनी साधना उपरांत
परजीवोने पण कल्याणनो सत्य मार्ग चींधी अनंत उपकार कर्यो छे. सौराष्ट्र, गुजरात
तेमज भारतभरना अनेक हितार्थी जीवो बाह्य क्रियाकांड अने मात्र शुभभावोमां निज
हित मानी मोथो मनुष्यभव एळे गुमावी रह्या हता, तेमने पूज्य गुरुदेवे
आत्मानुभवमूलक यथार्थ हितमार्ग तरफ वाळी समग्र भारतना भव्यजीवो पर अपार
उपकार कर्यो छे. आ रीते वीतराग जिनेंद्रोए प्ररूपेला यथार्थ मोक्षमार्गनो पू. गुरुदेवे
आ काळमां पुनरुद्वार करी एक पावनकारी युग सर्ज्यो छे. तेओश्री शुद्धात्मानुभवना
वज्रखडक पर ऊभा रहीने अनेक वर्षोथी समग्र भारतव्यायी हकिल करी रह्या छे के हे
जीवो! आत्मा देह–वाणी–मनथी पृथक पदार्थ छे; ते परना कर्तृत्व–भोकतृत्वथी रहित छे.
अनंत ज्ञान, अनंत आनंद, अनंत वीर्य वगेरे अपार शक््यताओथी भरेला ते
परमपदार्थनी प्रतीति अने अनुभूतिथी आत्मपर्यायो विकसित थई पोतानुं परिपूर्ण
सहज रूप प्रगट थाय छे. –आ अमारो आत्मसाक्षात्कार छे.’ आपणे पू. गुरुदेवनी आ
अनुभववाणीनो महिमा अंतरमां लावी, तेनी अपार ऊंडप समजी, निजकल्याण
साधी, मनुष्यभवने साथंक करीए–एवी आ मांगलिक दिने भावना भावी
निष्कारणकरुणामूर्ति गुरुदेवना चरणकमळमां दीनभावे वंदन करुं छुं.
हिंमतलाल जेठालाल शाह