आत्मधर्म : २३ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
छे, बीजानी साथे आत्माने कारकपणानो संबंध नथी. अहो, आवो निजस्वभाव छे,
तेने भूलीने बाह्य सामग्री शोधवानी व्यग्रताथी अज्ञानी जीवो नकामा परतंत्र
आकुळव्याकूळ थाय छे.
अहीं, आचार्यदेव आत्मानुं ‘स्वयंभू’ पणुं बतावीने चैतन्यस्वभावनुं ज
अवलंबन करावे छे. भाई, सर्वज्ञतारूपे बीजा कोईनी मदद विना परिणमे एवी
आत्मानी ताकात छे, सर्वज्ञतानो स्वभाव जेमां भर्यो होय ते ज सर्वज्ञतानो कर्ता थाय.
रागादिमां सर्वज्ञस्वभाव नथी के ते सर्वज्ञतानुं साधन थाय. सर्वज्ञताना कर्ता थवानुं के
सर्वज्ञतानुं साधन थवानुं सामार्थ्य सर्वज्ञस्वभावी आत्मामां छे; तेथी पोताना स्वतंत्र
सामर्थ्यथी शुद्धोपयोग प्रगट करीने पोते ज सर्वज्ञतानो कर्ता थाय छे. उग्र
शुद्धोपयोगरूपे परिणमवुं तेनुं नाम शुद्धोपयोगनी भावना छे, ते भावनामां विकल्प
नथी. आवा शुद्धोपयोगरूपे परिणमतां आत्मा निजस्वभावसामर्थ्य प्रगट करीने सर्वज्ञ
थाय छे. तेमां पोते ज स्वतंत्र कर्ता छे. अने पोते ज ते–रूपे परिणमीने पोतानुं प्राप्य
थाय छे, एटले पोते ज पोतानुं कर्म छे. वळी तेनुं साधन पोते ज छे. पोते ज स्वयमेव
ज्ञानरूपे परिणमवाना स्वभावने लीधे उत्कृष्ट साधन छे; बीजुं कोई जुदुं साधन छे ज
नहि. ते काळे ज्ञानरूपे परिणमतुं आत्मद्रव्य पोते ज साधकतम छे; बहारनुं तो साधन
नथी, राग पण साधन नथी ने पूर्वपर्याय पण खरेखर साधन नथी. ते काळे ते
भावमां तन्मय परिणमतुं द्रव्य ज साधन छे. वळी ते निर्मळपरिणति पोताने ज
देवामां आवती होवाथी आत्मा पोते ज तेनुं संप्रदान छे, ते कार्यमां ध्रुवपणे पोते ज
रहेतो होवाथी आत्मा ज तेनुं अपादान छे, ने ते परिणतिनो आधार पण पोते ज
होवाथी पोते ज अधिकरण छे. आ रीते आत्मा स्वयमेव छकारकरूप थईने पोतानी
निर्मळपरिणतिरूपे परिणमे छे, तेथी ते ‘स्वयंभू’ छे.
अरे जीव! तारा ज्ञान–आनंदरूपे परिणमे एवी ताकात तारा आत्मामां ज छे,
तेनुं अवलंबन ले. बीजे बहारमां न शोध. आवा स्वावलंबी स्वभावमां वळ्या वगर
सम्यग्दर्शन थाय नहि, ने स्वभाव खीले नहि. परभावमां तो अनादिनो पड्यो ज छे,
पण स्वभावनी खीलवट केम थाय? ते वात कदी समज्यो नथी. आचार्यदेव समजावे छे
के अरे जीव! मोक्षमार्ग तो आत्माना अवलंबने छे, बहारना अवलंबने मोक्षमार्ग
नथी. स्वसत्तानुं अवलंबन ज मोक्षमार्ग छे, अर्थात् शुद्धात्मानुभूति ते मोक्षमार्ग छे.
ज्यां शुद्धात्मानुभूति छे त्यां बारअंगनुं ज्ञान हो के न हो. एवो कोई नियम नथी के
बार अंगनुं ज्ञान होवुं ज जोईए. शुद्धात्मानी अनुभूतिमां बारे अंगनुं रहस्य आवी
गयुं. मध्यबिंदुथी चैतन्यदरियो उल्लस्यो त्यां पर्यायमां ज्ञान–आनंदनी भरती आवी.
अनुभूति वगर एकला शास्त्रना जाणपणा वडे के रागनी मंदता वडे पर्यायमां
अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदनी भरती आवती नथी. ज्यां शुद्धोपयोगथी आत्मस्वभावमां
एकाग्र थयो त्यां ते स्वभाव पोते ज उल्लसीने पर्यायमां प्रगटे छे. माटे अंतर्मुख थईने
पोताना आवा स्वभावने प्रतीतमां लेवो–ज्ञानमां लेवो–अनुभवमां लेवो–ते मोक्षार्थीनुं
कर्तव्य छे.