Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : २२ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
सर्वज्ञस्वभावना आश्रये थाय छे. अल्पज्ञ एवी मतिश्रुतपर्यायमां पण अंतर्मुख वलण
वडे सर्वज्ञ स्वभावनो निर्णय थाय छे.
सर्वज्ञस्वभावने साधता साधता स्वाश्रययनी भूमिका सहित वच्चे विकल्पथी जे
कर्म बंधाया (तीर्थंकरप्रकृति बंधाणी) ते प्रकृतिनो उदय केवळज्ञान थया पछी आव्यो
अने तेना निमित्ते जे वाणी छूटी ते वाणीमां पण स्वाश्रयनो ज उपदेश आव्यो छे.
स्वाश्रयभाववडे ज भगवाननी वाणीनो निर्णय थई शके छे. सर्वज्ञनो निर्णय सर्वज्ञना
आश्रयथी थतो नथी पण स्वसन्मुख थईने स्वभावना आश्रये ज तेनो निर्णय थाय
छे.
अहो, आवी स्वाश्रयविधि वडे ज अर्हंतोए मोहनो क्षय कर्यो ने एवो ज
स्वाश्रयमार्ग उपदेशीने ते अर्हंतो मोक्ष पधार्या... अहो, तेमने नमस्कार हो! तेमणे
दर्शावेला स्वाश्रयमार्गने नमस्कार हो.
जुओ, आ अरिहंतोनो मार्ग! अरिहंतोनो मार्ग पराश्रयवाळो नथी... ए तो
स्वाश्रितमार्ग छे, वीरनो मार्ग छे, जगतथी अत्यंत निरपेक्ष मार्ग छे. सम्यग्दर्शननी
प्राप्ति पण आ ज मार्गथी थाय छे, ने पछी वीतरागता तथा केवळज्ञान पण आ ज
मार्गथी थाय छे. एमां वच्चे क््यांय परनो आश्रय नथी, वच्चे क््यांय रागनुं अवलंबन
नथी, वच्चे क््यांय बीजा साधननी अपेक्षा नथी. अहो, आवो परम निरपेक्ष
वीतरागमार्ग अत्यंत आत्माधीन छे. स्वाधीन एवो शुद्धोपयोग ते ज तेनुं साधन छे.
अहीं उत्कृष्ट वात छे एटले केवळज्ञाननी प्राप्ति अन्य द्रव्योथी अत्यंत निरपेक्ष
अने अत्यंत आत्माधीन छे एम कह्युं; केवळज्ञाननी जेम सम्यग्दर्शनथी मांडीने
मोक्षमार्गनी बधीये निर्मळ पर्यायो अत्यंत आत्माधीन छे, अने अन्य साधनोथी
अत्यंत निरपेक्ष छे; एम बधी पर्यायोमां समजवुं. सम्यग्दर्शनमां परनुं अवलंबन जरा
पण छे? ... तो कहे छे के ना; ते अत्यंत स्वालंबी छे, जरा पण परावलंबन तेमां नथी.
अहो, सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञान सुधीनी मारी कोई पण पर्यायमां परनुं जराय
अवलंबन नथी, मारा आत्मस्वभावना अवलंबने ज सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञान
पर्यायो प्रगटे छे. बस, मारे मारामां ज जोवानुं रह्युं... मारामां ज ठरवानुं रह्युं.
स्वाश्रये सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञानरूप परिणमवुं ते मारा ज अधिकारनी वात छे,
तेमां बीजानो अधिकार नथी, पराधीनता नथी.
शुद्धउपयोगनी भावनाना प्रभावथी समस्त घातिकर्मोनो नाश करीने जेणे
शुद्धअनंतशक्तिवाळो चैतन्यस्वभाव प्राप्त कर्यो छे एवो आ आत्मा स्वयमेव पोताना
ज्ञायकस्वभावना सामर्थ्यथी ज छकारकरूप थईने सर्वज्ञ थयो छे, तेथी ते ‘स्वयंभू’ छे
बधाय अत्मामां स्वयमेव छकारकरूप थवानी ताकात