वडे सर्वज्ञ स्वभावनो निर्णय थाय छे.
अने तेना निमित्ते जे वाणी छूटी ते वाणीमां पण स्वाश्रयनो ज उपदेश आव्यो छे.
स्वाश्रयभाववडे ज भगवाननी वाणीनो निर्णय थई शके छे. सर्वज्ञनो निर्णय सर्वज्ञना
आश्रयथी थतो नथी पण स्वसन्मुख थईने स्वभावना आश्रये ज तेनो निर्णय थाय
छे.
दर्शावेला स्वाश्रयमार्गने नमस्कार हो.
प्राप्ति पण आ ज मार्गथी थाय छे, ने पछी वीतरागता तथा केवळज्ञान पण आ ज
मार्गथी थाय छे. एमां वच्चे क््यांय परनो आश्रय नथी, वच्चे क््यांय रागनुं अवलंबन
नथी, वच्चे क््यांय बीजा साधननी अपेक्षा नथी. अहो, आवो परम निरपेक्ष
वीतरागमार्ग अत्यंत आत्माधीन छे. स्वाधीन एवो शुद्धोपयोग ते ज तेनुं साधन छे.
मोक्षमार्गनी बधीये निर्मळ पर्यायो अत्यंत आत्माधीन छे, अने अन्य साधनोथी
अत्यंत निरपेक्ष छे; एम बधी पर्यायोमां समजवुं. सम्यग्दर्शनमां परनुं अवलंबन जरा
पण छे? ... तो कहे छे के ना; ते अत्यंत स्वालंबी छे, जरा पण परावलंबन तेमां नथी.
अहो, सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञान सुधीनी मारी कोई पण पर्यायमां परनुं जराय
अवलंबन नथी, मारा आत्मस्वभावना अवलंबने ज सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञान
पर्यायो प्रगटे छे. बस, मारे मारामां ज जोवानुं रह्युं... मारामां ज ठरवानुं रह्युं.
स्वाश्रये सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञानरूप परिणमवुं ते मारा ज अधिकारनी वात छे,
तेमां बीजानो अधिकार नथी, पराधीनता नथी.
ज्ञायकस्वभावना सामर्थ्यथी ज छकारकरूप थईने सर्वज्ञ थयो छे, तेथी ते ‘स्वयंभू’ छे
बधाय अत्मामां स्वयमेव छकारकरूप थवानी ताकात