रागपरिणाम ते खरेखर चैतन्यपरिणामस्वरूप नथी. भले थाय छे आत्मामां, पण ते
आत्माना स्वभावपरिणाम नथी. स्वभावपरिणाम तो शुद्धोपयोग छे. ते शुद्धोपयोग
वडे पगले पगले शुद्धता वधती जाय छे ने निर्वघ्न ज्ञानदर्शनशक्ति खीली जाय छे एटले
के आत्मा सर्वज्ञपणे प्रसिद्ध थाय छे.
अनंतने अनंत तरीके जाणीने तेनो पार पामी जाय छे–ए ज्ञाननी महान अनंत शक्ति
छे. आवी अचिंत्य सर्वज्ञशक्ति अने अपूर्व अतीन्द्रिय परम आनंद शुद्धोपयोग वडे
प्रगटे छे; बीजुं कोई साधन नथी.
आश्रये सर्वज्ञपणे प्रसिद्ध थयेलो आत्मा ‘स्वयंभू’ छे.
आदर, सत्कार, प्रशंसा अने ओळखाण करतां पोताना सर्वज्ञस्वभावनो निर्णय थाय
छे एटले दर्शनमोहनो नाश थईने सम्यग्दर्शन थाय छे. भगवान कहे छे के अमने जे
जाणशे तेने क्षायिक समकित थाशे. सर्वज्ञतानो निर्णय