Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : २१ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
शुद्धोपयोगनो प्रसाद
‘स्वयंभू’ आत्मानुं अन्य कारकोथी अत्यंत निरपेक्षपणुं
शुद्ध आत्मस्वभावनी प्राप्ति शुद्धोपयोग वडे थाय छे, अने ते शुद्धोपयोग
आत्मस्वभावना आश्रये ज थाय छे. शुद्धोपयोग चैतन्यपरिणामस्वरूप छे, शुभाशुभ
रागपरिणाम ते खरेखर चैतन्यपरिणामस्वरूप नथी. भले थाय छे आत्मामां, पण ते
आत्माना स्वभावपरिणाम नथी. स्वभावपरिणाम तो शुद्धोपयोग छे. ते शुद्धोपयोग
वडे पगले पगले शुद्धता वधती जाय छे ने निर्वघ्न ज्ञानदर्शनशक्ति खीली जाय छे एटले
के आत्मा सर्वज्ञपणे प्रसिद्ध थाय छे.
आवी सर्वज्ञता शुद्धोपयोगना प्रसादथी प्राप्त थाय छे. अहो, सर्वज्ञताना
अचिंत्य सामर्थ्यनी शी वात! अनंत अलोकाकाश वगेरेने साक्षान् जाणी ल्ये छे.
अनंतने अनंत तरीके जाणीने तेनो पार पामी जाय छे–ए ज्ञाननी महान अनंत शक्ति
छे. आवी अचिंत्य सर्वज्ञशक्ति अने अपूर्व अतीन्द्रिय परम आनंद शुद्धोपयोग वडे
प्रगटे छे; बीजुं कोई साधन नथी.
शुद्धोपयोग वडे जे शुद्धात्मप्राप्ति थाय छे ते अन्य कारकोथी निरपेक्ष छे,
आत्माने ज आधीन छे, जरापण परावलंबन तेमां नथी. आ रीते पोते पोताना ज
आश्रये सर्वज्ञपणे प्रसिद्ध थयेलो आत्मा ‘स्वयंभू’ छे.
अहो, सर्वज्ञता एटले ज्ञानना अचिंत्य सामर्थ्यनी पराकाष्टा! एमां जराय
परावलंबन नथी, एमां विकार नथी, एमां अपूर्णता नथी. आवा ज्ञानसामर्थ्यनो
आदर, सत्कार, प्रशंसा अने ओळखाण करतां पोताना सर्वज्ञस्वभावनो निर्णय थाय
छे एटले दर्शनमोहनो नाश थईने सम्यग्दर्शन थाय छे. भगवान कहे छे के अमने जे
जाणशे तेने क्षायिक समकित थाशे.
सर्वज्ञतानो निर्णय