आत्मधर्मः३४:
मंगल जन्मोत्सव अंक
१० प्रश्न........ १० उत्तर
१. पंडित कोण छे?
जेओ चैतन्यविद्यामां प्रवीण छे तेओ ज खरा पंडित छे.
२. मोक्षनुं कारण शुं छे?
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप भाव ते मोक्षनुं कारण छे.
३. ते मोक्षमार्ग केवो छे?
सम्यक्त्वादिरूप मोक्षमार्ग छे ते ज्ञानमय छे.
४. कर्म केवुं छे?
शुभ के अशुभ जे कोई कर्म छे ते बधुंय मोक्षमार्गथी विपरीत छे.
प. मोक्षमार्गमां शेनो विषेध छे?
समस्त कर्मोनो एटले के समस्त बंधभावोनो मोक्षमार्गमां निषेध छे.
६. शुभरागना आश्रये मोक्षमार्ग केम न थाय?
शुभराग पोते बंधस्वरूप छे ने मोक्षमार्गथी प्रतिकूळ छे, तो ते बंधभावना आश्रये मोक्षमार्ग
केम होय? शुभरागना आश्रये लाभ मानीने जे अटक्यो तेने ते रागनो निषेध करनार तो कोई
रह्युं नहि, रागथी जुदुं ज्ञान तो तेने रह्युं नहि, रागमां ज तन्मयताथी तेने मिथ्यात्व थयुं. अने
मिथ्यात्व होय त्यां मोक्षमार्ग क््यांथी होय? मिथ्यात्व तो मोक्षमार्गनुं धातक छे.
७. मिथ्याद्रष्टि जीव केवो छे?
मिथ्याद्रष्टि जीव ऊंधा अभिप्रायथी चैतन्यने हणी नाखनारो छे.
८. साचुं जीवन कोण जीवे छे?
सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा चैतन्यनो आश्रये ज्ञान–आनंदमय साचुं जीवन जीवे छे. ज्ञान ते आत्मानुं
जीवन छे. ते ज्ञानमय परिणमनार ज साचुं जीवन जीवे छे. अहा, आवुं जीवन अनंत काळमां
जीव कदी जीव्यो नथी. अज्ञानथी भावमरणे मर्यो छे. भेदज्ञान करे तो ज साचुं जीवन प्रगटे.
९. मोक्षार्थीए एटले के चैतन्यनी शीतळताना अभिलाषीए शुं करवा योग्य छे?
मोक्षार्थीए सघळुंय कर्म त्यागवा योग्य छे, अने एक ज्ञानस्वभावनो ज आश्रय करीने, अंतरमां
ऊंडा ऊतरीने, ज्ञानमय भावे परिणमवुं योग्य छे; ते ज्ञानमय परिणमनमां चैतन्यनी परम
शीतळता अनुभवाय छे.
१०. एवा ज्ञानमय परिणमननी शरूआत क््यारे थाय?
गृहस्थदशामां रहेला सम्यग्द्रष्टिने पण अंतर्मुख प्रयत्न वडे चैतन्यना अवलंबने ज्ञानमय
परिणमन शरू थई गयुं छे. सम्यग्दर्शन ते पण ज्ञानमय परिणमन छे, तेमां रागनो किंचित्
आश्रय नथी. आवुं ज्ञानमय परिणमन ते निष्कर्म छे, अने ते ज मोक्षनुं साधन छे.