Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Reg. No. G. 82
मंगल जन्मोत्सव अंक
अनंतदुःखमय संसारकी स्थितिका अवलोकन कर आपने उच्चतम तत्त्वज्ञानका अध्ययन
एवं मनन किया और उसकी महत्ता अन्य मुमुक्षुजनोंको अवगत कराकर उनका पथ–प्रदर्शन
किया। इस विनाशकारी अणुयुगके भौतिक वातावरणके विरुद्ध आध्यात्मिकता का प्रसार कर
आपने सहस्त्र दिग्भ्रान्त मानवोंका जीवन ही परिवर्तित कर दिया है। आपकी वीतरागप्रणीत
निर्ग्रंथ मार्ग पर द्रढ श्रद्धा, आत्मार्थिता, गुणगरिमा, निस्पृहता, कर्तव्यनिष्ठा और
परोपकारपरायणताका मूर्तिमानरूप सोनगढ [सौराष्ट्र] है, जो आपहीके कारण आज तीर्थस्थान
बन गया है।” (ईन्दोरना अभिनंदनपत्रमांथी)
“मरूस्थळना ऊंट जेवी आपणी दशा छे: जेम ते ऊंटने ज्यारे पाणी मळी जाय छे त्यारे ते
खूब पी ले छे ने पोतानी कोथळी भरी ले छे, पछी ज्यारे तृषातुर थाय त्यारे तेनाथी तृषा छीपावे छे;
तेम महाराजश्रीए अहीं पधारीने चार दिवस सुधी जे उपदेश दीधो तेमां घणुं ज अमृत पीवडावी दीधुं
छे अने आपणे पण ते खूब पीधुं छे–हृदयमां भरी लीधुं छे; हवे आ जे उपदेशामृत आपणे भरी लीधुं
छे ते आपणी पासे ज रहेशे ने संसारमां सुख दुःख प्रसंगे ते आपणने शांति आपशे; आ पर्याय रहे
त्यां सुधी, ने नवीन पर्यायमां पण आ उपदेशनुं मनन करवाथी घणो लाभ थशे.”
–रा. ब. भैयासाहेब राजकुमारसिंहजी M. A. LL. B. ईंदोर
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श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: हरिलाल देवचंद शेठ, आनंद प्रीन्टींग प्रेस–भावनगर.