Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : ३ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
पू. गुरुदेवनी मंगलछायमां ‘आत्मधर्म’ मासीकने आजकाल करतां २० वर्ष
थवा आव्या. सं. १९९९ ना असाड सुद बीजे राजकोटमां पू. गुरुदेवना दर्शने आव्या
बाद, एक आकस्मिक सुयोग बन्यो ने मने पू. गुरुदेव जेवा संतना चरणसान्निध्यनुं
सद्भाग्य प्राप्त थयुं. अने साथे साथे ‘आत्मधर्म’ ना लेखनादि द्वारा देव–गुरुनी ने
जिनवाणी मातानी भक्तिनो पण सुयोग मळ्‌यो. ए कार्यद्वारा गुरुदेवनी चैतन्यस्पर्शी
वाणीना रटण वडे मारा आत्मार्थने पोषण मळतुं रह्युं. ए रीते गुरुदेवनो मारा
जीवनमां मोटो उपकार छे. जेम २० वर्षथी मारुं जीवन गुरुदेवना चरणमां पोषायेलुं छे
तेम ‘आत्मधर्म’ साथे पण संकळायेलुं छे. एटले आ वैशाख मासथी ‘आत्मधर्म’ ने
पुन: संभाळतां आत्मधर्मना वांचक साधर्मीओनो समूह अने तेमनी प्रेमाळ लागणी
अत्यारे मारा हृदयमां वत्सलतानी उर्मिनुं आंदोलन जगाडे छे. सर्वे साधर्मीओना
स्नेहभर्या सहकारथी ‘आत्मधर्म’ दिनप्रतिदिन विकास पामशे एवी आशा छे.
जिज्ञासुओमां आत्मार्थीता जागे ने तेनी पृष्टि थाय, सर्वत्र वात्सल्यनुं
वातावरण फेलाय अने देवगुरु धर्मनी प्रभावना विस्तरे एवा उद्वेशपूर्वक आत्मधर्मनुं
संचालन थाय छे. आत्मानो अर्थी थईने आत्माने साधवा नीकळेलो जीव आखा
जगतने वेचीने पण आत्माने साधशे, एटले जगतनी कोई अनुकूळतामां ते रोकाशे
नहि के जगतनी कोई प्रतिकूळताथी ते डरशे नहि. आत्माने साधवो ए ज जेनुं
प्रयोजन छे, मुमुक्षुता जेना हृदयमां जीवंत छे, आत्मकल्याणनी साची बुद्धि जेना
अंतरमां जागी छे एवो आत्मार्थी जीव आत्माने साधवाना उपायोने ज आदरे छे ने
आत्महितमां विघ्न करनारा मार्गोथी पाछो वळे छे. आ छे तेनी आत्मार्थी ता. –आवा
आत्मसाधक–आत्मशोधक जीवने बीजा आत्मार्थी जीवो प्रत्ये–धर्मात्मा प्रत्ये–धर्मात्मा
प्रत्ये के साधर्मीजनो प्रत्ये सहेजे अंतरगत वात्सल्यनी उर्मि जागे छे... अने आत्माने
साधनारा तथा तेने साधवानो पंथ बतावनारा श्री देव–गुरु–शास्त्रनी सेवामां तेनुं
हृदय अर्पायेलुं होय छे. आ रीते आत्मर्थीता, वात्सल्य अने देवगुरुधर्मनी सेवा ए
मुमुक्षुजीवननो सार छे अने तेनो प्रसार करवो ए ‘आत्मधर्म’ नो उद्वेश छे, गुरुदेवनी
मंगलछायामां सर्वे साधर्मीबन्धुओना सहकारथी ए उद्देश सफळ थाओ, ए ज
अभ्यर्थना.
––ब्र. हरिलाल जैन