आत्मधर्म : ४ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
धर्मात्माने रंग लाग्यो छे आत्मानो
वनमां बेठा बेठा निर्विकल्प अनुभवनी गूफामांथी बहार आवीने
धर्मात्माने परमात्मस्वभावनी प्रीति लागी छे त्यां रागनी प्रति ऊडी गई
छे; आनंदनुं धाम एवुं चैतन्यतत्त्व तेमां प्रवेशीने ते रागादि आस्रवोथी जुदो
थयो छे. अहा, जेनी पर्याना आंगणे प्रभु पधार्या ते तूच्छरागना कर्तृत्वमां केम
रोकाय? धर्मीजीव आस्रवभावोना कर्तृत्वमां रोकातो नथी; अने जे अल्प आस्रव
रह्यो छे तेनो पण अंतर्मुख उपयोगवडे चैतन्यने वारंवार स्पर्शीने नाश करे छे.
जेने अंतरमां आत्माना आनंदनी ने परमात्मपदनी रुचि थई तेने ईन्द्रना
ईन्द्रासन पण तूच्छ लागे, छ खंडना राजभोग पण तेने तरणां जेवा तूच्छ
लागे... तेमां क््यांय सुखुं अस्तित्व छे ज नहि. सुखनी सत्ता तो मारा
चैतन्यधाममां छे, सुखधाम मारो आत्मा छे. –आवा भानमां धर्मात्मा जगतथी
केटला उदास होय!! आखा जगतनी दोलत सामे पडी होय तो पण धर्मात्मा
तेनाथी उदास छे, एक चैतन्यधाममां छे, सुखधाम मारो आत्मा छे. –आवा
भानमां धर्मात्मा जगतथी केटला उदास होय!! आखा जगतनी दोलत सामे पडी
होय तो पण धर्मात्मा तेनाथी उदास छे, एक चैतन्यधाम सिवाय बीजे क््यांय
तेनी प्रीति नथी. तेथी पूर्वे बंधायेला कर्मो उदयमां आवीने तेने खरी जाय छे पण
नवा कर्मोनुं बंधनुं कारण थता नथी, केम के कर्मोना उदयकाळे धर्मीनी रुचि तो
चैतन्य स्वभाव तरफ वळी गई छे, एकत्वबुद्धिथी कर्मोदयमां जोडाण थतुं ज
नथी. उदयना काळे धर्मीने तो चैतन्यनी निर्मळतानो काळ छे, तेथी
पूर्वबद्धआस्रवो तेने बंधनुं कारण थया विना ज खरी जाय छे. जेम युवान स्त्री
सामे ऊभी होय पण जे पुरुष निर्दोष अने निर्विकार रहे छे तेने स्त्री विकारनुं के
बंधननुं कारण थती नथी, तेम उदयमां आवेला पूर्वकर्मो पण ज्ञानी धर्मात्माने
बंधनुं कारण थता नथी केम के ज्ञानी धर्मात्मा विकारपणे परिणमता नथी; ज्ञानी
ज्ञानमय भावमां ज परिणमे छे, रागमय भावमां परिणमता नथी, रागमय
भावने ते पोताथी जुदो ज राखे छे. बार अंगनो सार ए छे के भावश्रुतज्ञानने
स्वभावसन्मुख करवुं. ते ज्ञानीए करी लीधुं छे. ज्ञानने स्वभावसन्मुख
परिणमावीने राग साथेनी एकता ज्ञानीए तोडी नांखी छे. राग साथे
एकताबुद्धिरूप जे मिथ्यात्व ते विकारनुं मूळ हतुं, ज्यां भेदज्ञानवडे मिथ्यात्वने
नष्ट कर्युं त्यां विकारनी केड तूटी गई, हवे विकारनुं जोर न रह्युं, अल्पकाळे तेनो
अभाव थये ज छूटको. जेनो उपयोग रागमां एकमेकपणे जोडाय छे तेने ज
कर्मबंधन थाय छे, जेनो उपयोग रागथी छूटो वर्ते छे तेने कर्मो छूटता ज जाय छे.