Atmadharma magazine - Ank 236
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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जेठ: २४८९: : ९:
(६०) धर्मात्माने लगनी लागी छे चैतन्यनी; चैतन्यना रंग पासे जगतना रंग तेने फिक्का
लागे छे.
(६१) रागथी भिन्न चैतन्यनी प्रतीत करीने तेणे पोताना आंगणे चैतन्य परमात्माने
पधराव्या छे.
(६२) अहा, जेना आंगणे परमात्मा पधार्या ते हवे परभावना कर्तृत्वमां केम रोकाय? क््यां
परमात्मा ने क््यां परभाव?
(६३) संत–महंत कहे छे के सिद्धप्रभुना तेडा आव्या छे, अमे तो हवे सिद्धोनी मंडळीमां भळ्‌या
छीए.
(६४) उपयोगने रागथी जुदो करीने अंतर चैतन्यमां वाळ्‌यो त्यां अपूर्व धर्मनो अवतार
थयो.
(६प) भाई, जीवनमां आवुं आत्मभान करवुं–तेमां जीवननी सफळता छे; एना वगर तो
बधुंय हा–हो ने हरीफाई छे,
(६६) अरे चैतन्य प्रभु! तारी प्रभुता तारा चैतन्यधाममां छे, रागमां तारी प्रभुता नथी.
(६७) अनाकुळ चैतन्य भावनुं वेदन थाय–तेने सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान कहेवाय छे.
(६८) धर्मात्मा रागरूपी मलिनताथी भिन्न पडीने चैतन्यना निर्विकल्प वेदनरूप शांत जळने
पीए छे.
(६९) स्व–परनुं भेदज्ञान थतां धीर अने गंभीर ज्ञानज्योति प्रगटे छे, ने राग साथे
कर्ताकर्मपणारूप मोहगांठ तूटी जाय छे.
(७०) धर्मात्माने अंतरथी चैतन्यस्वाद आव्यो तेमां एवी निःशंकता छे के हवे अल्पकाळे
परमात्मा थशुं.
(७१) चैतन्यनो निर्धार करीने स्वरूपसन्मुख थतां रागथी जुदो निर्विकल्प आनंद अनुभवाय
छे, एनुं नाम धर्म छे.
(७२) भाई, अनंताजुग विभावना पंथमां वीत्या पण तारी प्रभुता तने प्राप्त न थई; तारी
प्रभुता तो तारा अंतरमां चैतन्यथी भरपूर छे, तेनुं अवलोकन कर तो प्रभुतानो पंथ हाथमां आवे.
(७३) सम्यग्दर्शन थतां भगवान आत्मा पोते पोताना अनुभवमां प्रसिद्ध थयो के हुं तो ज्ञान
छुं; रागनुं वेदन ते हुं नथी.
(७४) आवा चैतन्यना स्वसंवेदनथी ज्यां सम्यग्दर्शनरूप बीज ऊगी त्यां आत्मामां चैतन्यनी
अपूर्व मंगल वधाई आवी, ने ते हवे वधी वधीने पूर्ण केवळज्ञान थशे.
जन्मवधाई दिने आवी चैतन्यवधाई
दातार गुरुदेवनो जय हो.