Atmadharma magazine - Ank 236
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 33

background image
: ८: आत्मधर्म: २३६
(४२) आचार्यदेव कहे छे के आत्मा तो ज्ञान छे, ज्ञानस्वरूप आत्मा ज्ञानथी बीजुं शुं करे?
(४३) ज्ञानस्वरूप आत्मा ज्ञान सिवाय बीजा कोई परभावने करे–ए अज्ञानीओनी मोह छे?
(४४) परनो तो कर्ता अज्ञानी पण थई शकतो नथी. अज्ञानी मात्र पोताना मोहभावने करे
छे.
(४प) अरे भाई, तारो आत्मा ज्ञान छे... ते ज्ञानने तुं रागथी भिन्न जाण.
(४६) अहो, आ तो जन्म–मरणना फेरामांथी छूटवुं होय–एनी वात छे.
(४७) आ तो संतोना अंतरअनुभवमांथी नीतरतुं परम सत्य छे.
(४८) चैतन्यनी आवी परम सत्य वात सांभळतां तेनो आदर थाय–तेमां पण रागनी घणी
मंदता थई जाय छे, ने तेमां ऊंचा पुण्य सहेजे बंधाई जाय छे. पण आत्मार्थीने रागनो प्रेम नथी.
(४९) चैतन्यस्वभावनुं बहुमान करीने तेना निर्णयनो ने अनुभवनो उद्यम करवो ते मूळ
वस्तु छे.
(प०) स्वभावना बहुमानमां वच्चे ऊंचा पुण्य बंधाय ते तो अनाजना कणसलां जेवा छे,
तेना उपर धर्मीनुं लक्ष नथी. जेम सारा खेडूतनुं लक्ष अनाज उपर छे तेम धर्मीनुं लक्ष चैतन्य स्वभाव
उपर छे.
(प१) अज्ञानीए स्वभावमां जवा माटे रागनुं अवलंबन मान्युं छे, संतो तेनो निषेध करे छे
के अरे भई! तने रागनुं शरण नथीय, रागथी जुदुं परिणमतुं ज्ञान ज तने शरणरूप छे. माटे एवा
ज्ञानने तुं जाण.
(प२) अरे श्रोताओ! तमारा ज्ञानमां अमे अनंता सिद्धोने पधारावीए छीए.
(प३) आ वात तारा काळजामां बेसतां तारुं लक्ष ज्ञान उपर ज रहेशे, एटले रागादिनो
आदर नहि रहे; एटले अल्पकाळे रागने टाळीने तुं पण सिद्ध थई जईश.
(प४) जो आत्मानुं स्वरूप सत्यपणे समजे तो ते सत्य समजणमां अनुभूतिनो आनंद
आव्या विना रहे नहि.
(पप) भगवानना सेवक संतो जाग्या तेओ भगवानना आडतीआ तरीके जगतने
भगवाननो संदेश संभळावे छे.
(प६) अरे जीवो! रागथी जुदा पडीने तमे तमारा चैतन्यमां प्रवेश करो... चैतन्यमां आरोहण
करो.
(प७) अधर्म काळमां विकारनुं वेदन हतुं, हवे धर्मकाळमां एनाथी कोई जुदुं ज (चैतन्यरसनुं)
आनंदमय वेदन थयुं.
(प८) भाई, रागनो उत्साह छोडीने चैतन्यनो उत्साह कर; एकवार चैतन्यनो उत्साह करीने
अंतरमां वळ्‌यो के भवथी बेडो पार!
(प९) भाई, आ भवना अंत करवाना टाणा आव्या छे. तेमां अनंत संत महंत कहे छे एवा
आत्मानुं भान तो कर.