Atmadharma magazine - Ank 236
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: ३०: आत्मधर्म: २३६
जिनमंदिरमां भक्ति थई हती. बीजे दिवसे (जेठ सुद १३ना रोज) पू. गुरुदेव खंडवा पधारतां
उमंगभर्युं स्वागत थयुं हतुं. स्वागतविधि बाद स. गा. १४ उपर सुंदर मंगलप्रवचन थयुं हतुं. जेमां
गुरुदेवे कह्युं के अध्यात्मनी आवी वार्ता प्रेमथी सांभळवी ते पण मंगळ छे. खंडवामां गुरुदेव बे दिवस
रह्या हता. प्रवचन, जिनेन्द्रभक्ति वगेरे कार्यक्रमोमां सौए उत्साहथी भाग लीधो हतो.
खंडवाथी जेठ सुद १पनी सवारमां प्रस्थान करीने, पावागीर–उन सिद्धक्षेत्र तथा बडवानी
सिद्धक्षेत्रनी वंदना करीने पछी सोनगढ तरफ पाछा फरतां रस्तामां संतरोड तथा अमदावाद थईने पू.
गुरुदेव जेठ वद चोथ ने मंगळवार (ता. ११–६–६३) ना रोज सोनगढ पधारी रह्या छे. आत्मधर्मना
पाठको आ समाचार वांचता हशे त्यारे सोनगढमां गुरुदेवनुं भव्य स्वागत थई रह्युं हशे ने गुरुदेवना
मंगल आगमनथी सुवर्णपुरीनुं वातावरण हर्षोल्लासवंतु बनी गयुं हशे. गुरुदेवनी शीतळ मंगळ
छायामां अध्यात्मरसघोलन वडे आत्महित साधीए ए ज भावना.
सम्यग्द्रष्टिका पंथ
जगतसे निराला है.
जगत बर्हि विषयोमां एकाग्र थईने राग–द्वेष–मोहमां अटक्युं छे.
धर्मात्मा सम्यग्द्रष्टि अंर्तविषयमां चैतन्यस्वभावमां
एकाग्र थईने मोक्षमार्ग साधे छे.
सम्यग्दर्शन पण चैतन्यमां
एकाग्रताथी ज थाय छे.
अंतरंग अभ्यासवडे पहेलां चैतन्यनी द्रढ श्रद्धा करवी जोईए.
चैतन्यनी सम्यक्श्रद्धा करतां मोक्षमार्गनी शरूआत थई जाय छे.
तेमां चैतन्यनो एकनो ज आश्रय छे,