Atmadharma magazine - Ank 239
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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भादरवो: २४८९ : ३ :
बहेनोनी पवित्रता, अनुभव, संस्कार, वैराग्य, तेमज देवगुरुधर्म प्रत्येनी अपार भक्ति अने
अर्पणता, विनय अने वात्सल्य वगेरेनुं विगतवार वर्णन अहीं थई शके तेम नथी. तेओ श्रीनी
छत्रछायाने लीधे ज नानी वयना बहेनो मातापिताने छोडीने आवी हिंमत करी शक््या छे. आ
बहेनोना जीवनमां पू. बेनश्रीबेन अपार वात्सल्यपूर्वक निरंतर ज्ञानवैराग्यनुं सींचन करे छे. आ रीते
जीवनमां पू. बेनश्री–बेननो पण महान उपकार छे. तेओश्रीनुं आदर्शजीवन सहेजे सहेजे
ज्ञानवैराग्यनी प्रेरणा आपे छे.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लेनारा आ बहेनोए अनेक वर्षो सुधी परमपूज्य गुरुदेवना उपदेशना श्रवण
उपरांत अनेक शास्त्रोनो अभ्यास कर्यो छे. दर्शन –पूजनादि कार्यक्रमो तो तेमने माटे सहज छे.
रात्रिभोजन त्याग वगेरे योग्य आचारोनुं पण तेओ पालन करे छे. ब्रह्मचर्यजीवन गाळवानो निर्णय
सौए पोताना द्रढ विचारबळथी कर्यो छे. आ बधा साधर्मी बहेनो प्रत्ये हार्दिक अभिनंदनपूर्वक,
संतोनी छायामां आत्मप्रयत्नपूर्वक सौ पोताना ध्येयने शीघ्र प्राप्त करीए... एवी भावना भावीए
छीए.
× × × ×
ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञानी विधि बाद विद्वान वडील बंधुश्री हिंमतलालभाईए संघ तरफथी बहेनोने
अभिनंदन आपतुं भावभीनुं भाषण कर्युं हतुं–जे आ अंकमां अक्षरश: आपवामां आव्युं छे. भाषण
बाद ब्रह्मचारी बहेनोना वडीलो तरफथी तेमज बीजा अनेक मुमुक्षुओ तरफथी आ प्रसंग निमित्ते
अनेक रकमो जाहेर करवामां आवी हती... आ उपरांत बीजी विविध वस्तुओनी पण जाहेरात करवामां
आवी हती. श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तफरथी दरेक ब्र. बहेनोने अभिनंदनपूर्वक एकेक साडलो
तथा चांदीनो ग्लास भेट आपवामां आव्यो हतो. अंतमां ८ ब्रह्मचारी बहेनो तरफथी श्रीफळनी
लाणीपूर्वक आ प्रसंग पूर्ण थयो हतो.
आजे पू. गुरुदेवनुं आहारदान ब्र. बहेनो तरफथी गोगीदेवी आश्रमना स्वध्यायभवनमां थयुं
हतुं. आ उपरांत जुदाजुदा ब्रह्मचारी बहेनोना वडीलो तरफथी चार दिवस सुधी संघ जमण थयुं हतुं.
बहारगामथी शुभेच्छाना अनेक संदेशाओ पण आव्या हता. ‘आत्मधर्म’ पण तेमां सूर पूरावीने
ब्रह्मचारी बहेनोना जीवनध्येयनी सफळता ईच्छे छे.
ब्र. हरिलाल जैन
सु... न्द... र... व... स्तु
परम सुखदायी सिद्धपदके लाभ के लिये भव्य जीवका परम
कर्तव्य है कि वह सम्यग्दर्शनको प्राप्त करके आत्माका अनुभव करता
चला जावे. जितना जितना आत्मानन्दका साधन है वह विकारोंको
हटानेवाला है, कषायोंको मिटानेवाला है, वही कर्मोकी निर्जरा करनेवाला
है व वही मोक्षनगरमें पहूंचानेवाला है. आत्मानुभव ही यथार्थ
मोक्षमार्ग है व जिनधर्म है, आत्माको छोडकर और कोई सुन्दर वस्तु
नहीं है. (‘अष्टप्रवचन’ मांथी)