: ४ : आत्मधर्म: २३९
ब्रह्मचर्यअंक (१) अने (२) मांथी केटलाक अवतरणो
* अरे जीव! बाह्यविषयो तो मृगजळ जेवा छे, तेमां क्यांय तारी शांतिनुं झरणुं नथी... एम
समजीने हवे तो तेनाथी पाछो वळ... ने चैतन्यस्वरूपमां अंतर्मुख था. चैतन्यसन्मुख थतां शांतिना
झरणामां तारो आत्मा तृप्त–तृप्त थई जशे.
* हे परमकृपाळु गुरुदेव! अध्यात्मरसनी खुमारीथी ने ब्रह्मचर्यना रंगथी आपनुं जीवन
रंगायेलुं छे... तेथी, आपनी महा प्रतापी छायामां निरंतर वसता... ने आपश्रीना पावन
उपदेशनुं पान करता आपना नाना नाना बाळक–बाळिकाओ पण ब्रह्मजीवन प्राप्त करे तेमां शुं
आश्चर्य छे!
* पू. गुरुदेवे वैराग्यपूर्वक कह्युं: आ शरीर तो धूळनुं ढींगलुं छे, तेमां क्यांय आत्मानुं सुख
नथी; तेना उपरथी द्रष्टि हठावीने, चैतन्यस्वभावमां एकाग्र थतां अंदरथी शांतिनुं एक झरणुं आवे छे.
जीव जे शांति लेवा मागे छे ते कोई संयोगमांथी नथी आवती, पण पोताना स्वभावमांथी ज आवे
छे.
* गुरुदेवे कह्युं: आ प्रसंगतो खरेखर आ बे बेनोने आभारी छे... आ बेनोनां आत्मा
अलौकिक छे... आ काळे आ बेनो पाक्या ते मंडळनी बेनुंना महाभाग्य छे... जेनां भाग्य हशे ते
तेमनो लाभ लेशे.
* “निसंदेह आज यह भौतिकताके उपर आध्यात्मिकताकी विजय है” (पं. नाथुलालजी,
ईन्दोर)
* आ सम्यग्दर्शननी वात अपूर्व मंगलकारी छे. बराबर लक्ष राखीने समजवा जेवी छे...
जो आत्मानुं लक्ष राखीने अंतरमां आ वात समजे तो अनंतकाळे नहि मळेलो एवो अपूर्व
सम्यग्दर्शननो लाभ थाय. आ वात संभाळवा मळवी पण मोंघी छे, ने समजवामां स्वभावनो
अपूर्व पुरुषार्थ छे.
* हे जीव! तुं पहेलां आ वातनो निर्णय कर के आत्माना स्वभाव सिवाय बहारना कोई
विषयोमां सुख नथी, आत्मस्वरूपमां अंतर्मुख थये ज सुख छे. आम नक्की करीने बाह्य विषयोमांथी
सुखबुद्धि छोड ने अंत अंतमुर्ख चैतन्यना आनंदने अनुभववानो उद्यम कर... आनंदनुं पूर तारा
आत्मामां वहे छे.
* साचुं ब्रह्मजीवन जीववाना अभिलाषी जीवोनुं पहेलुं कर्तव्य ए छे के, अतीन्द्रिय आनंदथी
भरपूर अने सर्वे परविषयोथी खाली एवा पोताना आत्मस्वभावनी रुचि करवी... तेनुं लक्ष करवुं...
तेनो अनुभव करीने तेमां तन्मय थवानो प्रयत्न करवो.
पू. गुरुदेवना बपोरना प्रवचनमां हालमां स्वयंभू–स्तोत्र वंचाय छे. समन्तभद्रस्वामी
जेवा धूरंधर आचार्यद्वारा रचायेली २४ तीर्थंकर भगवंतोनी स्तुति उपरना आध्यात्मसझरतां
भक्तिभर्या प्रवचनो श्रोताजनोने आनंदित करे छे. बीजा एक हर्षदायक समाचार ए छे के
मुंबईनी माफक राजकोट शहेरमां पण सुंदर समवसरण (तेमज मानस्तंभ) बनाववानो विचार
त्यांना श्री संघे कर्यो छे.