Atmadharma magazine - Ank 239
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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भादरवो: २४८९ : प :
ब्रह्मचर्यजीवननी
भूमिका
केवी होय?
सोनगढमां भादरवा सुद एकमना रोज आठ
कुमारिका बहेनोए ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लीधी ते प्रसंगे तेमने
अभिनंदनरूपे विद्वान भाईश्री हिंमतलाल जे. शाहे जे
भावभीनुं वैराग्यप्रेरक भाषण करेल ते अहीं अक्षरश:
आपवामां आव्युं छे. तेमां ब्रह्मचर्यजीवननी यथार्थ
भूमिका केवी होय–तेनुं तेमणे सुंदर वर्णन कर्युं छे;
आत्मतत्त्वने पामवानी गडमथल करतां, एनी झंखना
करतां, एनुं मंथन करतां आवा ब्रह्मचर्यादिना
जातजातना शुभ भावो जीवने सहेजे आवी जाय छे. –
एटले मुख्यता छे आत्मतत्त्वने पामवानी प्रयत्ननी.
विशेष तो तेओश्रीनुं भाषण ज बोलशे..
आजनो प्रसंग महा शुभ प्रसंग छे. आ कळिकाळनी अंदर जैन तेमज जैनोतरोमां आवा
अस्तिधाराव्रत लेवाना प्रसंगो घणा लांबा काळथी भाग्ये ज बन्या हशे. आजे आठ कुमारिका
बहेनो के जेओ उच्च केवळणी पामेल ने साधनसंपन्न छे तेओ आजीवन ब्रह्मचर्य जेवुं महान
मेरुसम–मेरु तोळवा जेवुं दुर्घट–व्रत अंगीकार करे छे, अने कुल तो ३७–३७ कुमारिका बहेनोए
गुरुदेव पासे ब्रह्मचर्य ग्रहण करी सत्संगने अर्थे पोतानुं जीवन न्योच्छावर कर्युं छे. आवा प्रसंगो
परमपूज्य गुरुदेवनी स्वानुभवझरती वाणीना प्रतापथी बन्या करे छे. ‘आत्मा एक अमर तत्त्व
छे अने देह क्षणिक छे; अमरतत्त्वनी ओळखाण ए ज आ मनुष्यभवमां कर्तव्य छे, नहि तो आ
जीवननी एक फूटी बदामनी पण किंमत नथी’ – एवा स्वानुभवझरता उपदेशना प्रतापे आवी
आजीवन– ब्रह्मचर्य जेवी अशक््य–असंभवित जेवी वातोने नानी नानी बाळाओ पण शक््य करी
बतावे छे. आ दुर्लभ मनुष्यभव विषयोनी अंदर रमवामां ज गाळवामां आवे तो ए राखने
माटे रतनने बाळवा जेवुं छे एम श्री कार्तिकेयस्वामीए कह्युं छे, अने पूज्य गुरुदेव आपणने
अनेकवार कहे छे. अनाजनी अंदर राख नाखवा माटे राख जोईती होय ने तेने माटे रतननो ढग
कोई बाळे, –एना करतां अनंतगुणो मूर्ख ए मनुष्य छे के विषयोमां रमवा माटे आ मनुष्यभव–
सत्संगने अधिष्ठित एवो आ