Atmadharma magazine - Ank 239
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म: २३९
मनुष्यभव–एळे गुमावे छे. गुरुदेवना आवा पुरुषार्थप्रेरक उपदेशने पामीने आ बहेनोए महान
दुर्घट वातने पण सुगम बनावी छे.
पू. गुरुदेवना उपदेशना प्रतापे आ काळमां घणा घणा प्रकारे प्रभावना थई छे;
आत्मतत्त्वने ओळखो, अंदर ज्ञानमूर्ति भगवान छे–एने ओळख्या विना बधा कार्यो निष्फळ
जाय छे,’ –
एवा गुरुदेवना पावन उपदेशने अनुसरीने, एवा आत्मतत्त्वने पामवानी गडमथल
अंतरमां करतां, एनी झंखना करतां, एनुं मंथन करतां जातजातना शुभभावो सहजपणे,
कष्टदायक जुदो प्रयत्न कर्या विना, आपोआप जीवने आवी जाय छे. आखा भारतवर्षनी अंदर
अनेक अनेक जीवो अनेक गामोनी अंदर स्वाध्याय, वांचन, मनन, तत्त्वज्ञाननो विचार, मंथन,
आत्मस्वरूप ओळखवानी झंखना–एवा ऊंचा प्रकारना शुभभावो करता गुरुदेवना परम प्रतापे
थया छे. वळी अंदर सर्वज्ञस्वभावी तत्त्व पड्युं छे–ए ज्यांसुधी ओळखातुं नथी त्यांसुधी, जेमणे
सर्वज्ञपद प्राप्त कर्युं छे एवा अर्हंतो अने सिद्धो प्रत्ये जीवने भक्तिना भाव वहे छे; एवो
भक्तिनो प्रवाह–एवा शुभभावो पण गुरुदेवना अध्यात्म–उपदेशना प्रतापे धोधमार नदीनी जेम
वह्या छे. लोभ पण अनेक जीवोना मोळा पड्या छे; तन, धन, यौवन, स्त्री, पुत्र ए बधुं
विद्युतना जेवुं चंचळ छे एम लागवाथी, एक आत्मा ज अमरतत्त्व छे एवुं घूंटण रहेवाथी, अंदर
लोभ मोळो पडे छे, माया मोळी पडे छे, समताना भाव खीले छे; ए रीते जीवोने लोभनी मदता
थतां ठेकठेकाणे सर्वज्ञ भगवानना मंदिरो पण थया छे. आ रीते अनेक जीवोने पोतानी
योग्यतानुसार आत्मतत्त्वने पामवानी धगशमां, एमां पडतां–आखडतां, –एनी गडमथल
सेवतांसेवतां, पोतानी योग्यतानुसार अनेक सद्गुणो उद्भव पाम्या छे. एवा एक प्रकारनो आ
ब्रह्मचर्यनो सद्गुण पण जीवने उद्भव थाय छे; ते जीवोने वैराग्य थाय छे के ‘धिक्कार छे आ
आत्माने के जे विषयोनी अंदर रमीने प्राप्त–सत्संगनो पण लाभ लई शकतो नथी. ए जो नहि ले
तो अनंत भवसागरनी अंदर गळकां खातां खातां महाभाग्यथी आ हाथमां आवेलुं नौकानुं
लाकडुं छूटी जशे, अने जीवने पश्चात्तापनो पार नहि रहे, –एम वैराग्यभावना सेवतां जीवोने
ब्रह्मचर्य सहजपणे आवे छे. (सहजपणे एटले आत्मस्वरूपनी ओळखाणपूर्वक–एवा अर्थमां
नहि, परंतु कष्टयुक्तपणे नहि, पराणे नहि, “ आ रीते कष्ट सहन कर्या विना आपणने मोक्ष नहि
प्राप्त थाय माटे कष्ट सहन करीए,” एवा भावथी नहि, परंतु आत्मस्वरूपनी प्राप्तिनी गडमथल
करतां करतां सुगमपणे.
–आम तो आ बहेनो जाणे छे के आत्मअनुभव पहेलांनी ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा ते मात्र
शुभभाव ज छे, अने ए शुभभाव ए मुक्तिनो प्रयत्न नथी, ए मुक्तिनो पुरुषार्थ नथी.
मुक्तिनो पुरुषार्थ तो आत्मस्वभावनी ओळखाण थतां प्रगट थाय छे; आत्मतत्त्व–चिंतामणिनी
ओळखाण ज्यारे थाय त्यारे एनी पहेलूरूपे दर्शन–ज्ञान–चारित्र आदि मोक्षमार्गनी पर्यायो प्रगट
थाय छे, त्यारपहेलां नही. बीजा अन्य मार्ग प्ररूपनाराजीवो तो, एम कहे छे के जो एकवार
ब्रह्मचर्य कष्टे करीने पण सहन करो तो मोक्ष जरूर मळशे. –एवुं माननारामां पण, एवा मार्गमां
पण, ए ब्रह्मचर्य पाळनारा अत्यंत अल्प नीकळे छे; गुरुदेवकथित