(१) उत्तम क्षमाधर्मनी आराधना
क्रोधना बाह्यप्रसंग उपस्थित थवा
छतां, रत्नत्रयनी द्रढ आराधनाना बळे
क्रोधनी उत्पत्ति थवा न देवी ने वीतराग भाव
रहेवो, असह्य प्रतिकूळता आवे तोपण क्रोधवडे
आराधनामां भंग पडवा न देवो ते
उत्तमक्षमानी आराधना छे.
श्रेणिक राजाए महान उपसर्ग करवा
छतां श्री यशोधर मुनिराज स्वरूप–
आराधनाथी डग्या नहि; क्षमाभाव धारण
करीने श्रेणीकने पण धर्मप्राप्तिना आशीर्वाद
आप्या.
बीजी तरफ श्रेणीकराजाए पण धर्मनी
विराधनाना अनंत क्रोधपरिणाम छोडीने सम्यग्दर्शन वडे धर्मनी आराधना प्रगट करी. ते पण उत्तम
क्षमानी आराधनानो एक प्रकार छे. उत्तमक्षमाना आराधक संतोने नमस्कार हो.
(२) उत्तम मार्दवधर्मनी आराधना
निर्मळ भेदज्ञानवडे जेणे आखा
जगतने पोताथी भिन्न अने स्वप्नवत् जाण्युं
छे, अने आत्मभावनामां जे तत्पर छे. तेने
जगतना कोई पदार्थमां गर्वनो अवकाश क्यां
छे?
रत्नत्रयनी आराधनामां ज जेमनुं
चित्त तत्पर छे. एवा मुनि भगवंतोने चक्रवर्ती
नमस्कार करे तो पण मान थतुं नथी, ने कोई
तिरस्कार करे तो दीनता थती नथी. आवा
निर्मान मुनि भगवंतोए उत्तम मार्दवधर्मनी
आराधना होय छे.
पंच परमेष्ठी वगेरे धर्मात्मा गुणीजनो
प्रत्ये बहुमान पूर्वक विनयप्रवर्तन ते पण मार्दवधर्मनो एक प्रकार छे.
ध्यानस्थ बाहुबलीना चरणोमां आवीने भरतचक्रवर्तीए पूजन कर्युं छतां बाहुबली गर्व न
करतां, निजध्यानमां तत्पर थईने तत्क्षणे ज केवळज्ञान पाम्या. आवा उत्तम मार्दवधारी सन्तोने
नमस्कार हो.